प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार की दसवीं पुण्यतिथि पर स्मृत्यांजलि कार्यक्रम आयोजितशिवपुरी- प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर हमेशा मर्यादाओं में रहे। आज भी जब-जब हम उनकी तस्वीर की तरफ देखते हैं, या मन के कैनवास पर उनका चित्र उभरता है, तो आज भी उनकी निश्छल मुस्कुराहट हम सभी को प्रेरणा से प्रदीप्त कर देती है। उक्त विचार प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर की दसवीं पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृत्यांजलि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिवपुरी के प्रतिष्ठित नेत्र विशेषज्ञ डॉ. एस.के. पौराणिक ने व्यक्त किए।
डॉ. एस.के. पौराणिक ने पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृत्यांजलि सभा को संबोधित करते हुए कहा कि गुरुजन अपने विद्यार्थियों, अपने शिष्यों की सफलता के लिए मंत्र देते हैं जो आगे चलकर जीवन निर्माण का आधार बन जाते हैं। प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर ने भी स्वयं अपने आचरण में जीकर जिस मंत्र को अपने सभी विद्यार्थियों को समर्पित किया वो तीन अक्षरों का मंत्र था - "एबीसी"। इस मंत्र के पहले अक्षर "ए" अर्थात "अवेलेबिलिटी" (उपलब्धता) को उन्होंने स्वयं जीकर सबके लिए उदाहरण के रूप में सामने रखा। हर निर्धारित जगह पर प्रोफेसर सिकरवार सर की उपस्थिति निर्धारित समय पर होती थी।
जीवन में किसी भी कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए समय का अनुशासन इस मंत्र के माध्यम से उन्होंने अपने शिष्यों को स्वयं जीकर सिखाया। उनके मंत्र का दूसरा अक्षर था - "बी" अर्थात "बिहेवियर" (व्यवहार) था। अपने सभी शिष्यों, विद्यार्थियों, सहयोगियों के प्रति प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर का व्यवहार हमेशा बेहद विनम्रता और सहृदयता से भरा रहा। उनके जीवन का यही पक्ष था जिसने उन्हें विद्यार्थियों के बीच अद्भुत लोकप्रिय बनाया। प्रोफेसर सिकरवार सर के गुरुमंत्र का तीसरा अक्षर था - "सी" अर्थात "कॉम्पिटेंसी" (सामर्थ्य)। प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर की क्षमता, उनकी विद्वता अदभुत थी। इंग्लिश लिटरेचर में वे डी.लिट. थे। गुरुमंत्र के इन सभी तीनों अक्षरों को उन्होंने विचार या ज्ञान के रूप में विद्यार्थियों को नहीं दिया, बल्कि स्वयं जीकर उदाहरण के रूप में सबके सामने रखा।
मुख्य वक्ता के रूप में उद्बोधन देते हुए डॉ. एस.के. पौराणिक ने प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर के महनीय व्यक्तित्व को रेखांकित करने के लिए उनकी स्मृति की एक घटना को साझा करते हुए कहा कि एक बार कॉलेज में जब किसी मुद्दे को लेकर विद्यार्थियों का विरोध प्रदर्शन चल रहा था तब उस विरोध प्रदर्शन में जैसे ही वे विद्यार्थियों के बीच पहुंचे वैसे ही विद्यार्थियों की पूरी भीड़ छंट गई और विरोध प्रदर्शन वहीं समाप्त हो गया। इतना आदरभाव इस अंचल के विद्यार्थियों के मन में प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर के प्रति था।
डॉ. एस. के. पौराणिक ने प्रोफेसर सिकरवार सर की विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति को रेखांकित करने के लिए रामचरितमानस से उदाहरण देते हुए कहा कि बाली ने सुग्रीव को जब निष्कासित कर दिया तब सुग्रीव भगवान राम की शरण में आए। भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण के साथ उन्हें बैठाया। कहा आओ किष्किंधापति। अर्थात भविष्य में सुग्रीव को किष्किंधा नरेश बनाने का एक संकेत उन्होंने सुग्रीव के मन में डाल दिया था। ठीक ऐसे ही प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर विद्यार्थियों के मन में उनके भविष्य का रोडमैप स्थापित कर दिया करते थे, इससे कमजोर से कमजोर विद्यार्थी को भी इतना प्रबल प्रोत्साहन मिलता था कि वे असंभव से दिखने वाले कार्य को करने में सफल सिद्ध होते रहे।
स्मृत्यांजलि कार्यक्रम में सर्वप्रथम अमृतवाणी के पाठ और फिर अंत में पुष्पांजलि अर्पित कर नगरवासियों ने प्रोफेसर स्व. चंद्रपाल सिंह सिकरवार सर के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की।
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