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Monday, September 25, 2023

प्रागी के टिकिट पर मडऱाते खतरे के बादल, दहेज एक्ट में जा चुके हैं जेल



नामांकन भरते समय दो पत्नी और दहेज एक्ट का केस दर्ज होने की जानकारी छुपाई थी, न्यायालय में याचिका विचाराधीन

शिवपुरी। प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अब बमुश्किल ढेड़ माह का समय बचा हुआ है ऐसे में सियासी दलों में टिकिट के लिए जंग मची हुई है। कांग्रेस सत्ता वापसी के लिए कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहती और प्रदेश कीसभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन में कोई गलती ना हो इसके लिए फूंक-फूंककर कदम रख रही है। हम जिले की करैरा विधानसभा की बात करें तो यहां से वर्तमान विधायक प्रागीलाल जाटव को एक फिर कांग्रेस द्वारा मौका देने की खबरें आ रही थी, लेकिन फिलहाल इस पर विराम लग गया है। 

पिछले कुछ समय पहले प्रागीलाल द्वारा पिछले उपचुनाव में नामांकन फार्म भरते समय तथ्य छुपाने के मामले ने खूब सुर्खियां बटोरी जिसमें उनके द्वारा दो पत्नी होने और दहेज एक्ट में 10 दिन जेल जाने की जानकारी छुपाई थी। बताया जा रहा है कि मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी विचाराधीन है। अब ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस प्रागीलाल को अपना उम्मीदवार बना देती है और चुनाव से ठीक पहले यदि न्यायालय द्वारा प्रागीलाल को चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य घोषित कर दिया तो कांग्रेस के लिए मुसीबतें बढ़ जाएंगी क्योंकि जिस सीट को वह अपने खाते में मानकर चल रही है उस स्थिति में यदि उसका चुनाव चिन्ह ही नहीं होगा तो स्वत: ही मुकाबले से बाहर हो जाएगी। ऐसी विकट परिस्थिति में कांग्रेस प्रागीलाल के अलावा अन्य जिताऊ कैंडीडेट्स पर भी नजर गढ़ाए हुए है जो उसे इस भंवरजाल से बाहर निकाल सके।

ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर है पिटीशन

चुनाव से ठीक पहले करैरा विधायक को अपनी ही नासमझी की वजह से मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। करैरा विधायक के खिलाफ पहले तो चुनाव आयोग में शिकायत हुई। इसके बाद नवनीत सिंह ने ग्वालियर हाईकोर्ट में इलेक्शन पिटिशन दायर की जिनमें उन्होंने दर्शाया है कि विधायक की दो पत्नी के होने के बाद भी इन्होंने अपने नॉमिनेशन फॉर्म में 2013, 2018 और उपचुनाव 2020 में अपने नामांकन फार्म में परिवार का कॉलम में खाली छोड़ कर उसे पर निरंक भरा है जो कि कानूनी तौर पर गलत है।

ऐंटीइनकम्बेंसी और सहानुभूति के सहारे मिली जीत के बाद नहीं छोड़ पाए जनता पर कोई छाप

विधानसभा उपचुनाव में प्रागीलाल जाटव पर कांग्रेस ने अपना दांव खेला और उसे सफलता भी मिली, लेकिन इस जीत को कांग्रेस और प्रागी की जीत कहना सरासर बेईमानी होगी क्योंकि इस जीत में एक तो जसमंत जाटव के प्रति ऐंटीइनकम्बेंसी फेक्टर का प्रागीलाल को लाभ मिला, वहीं वह बसपा की ओर से पिछले तीन विधानसभा चुनाव हारते आ रहे थे इसकी सहानुभूति ने जनता उन्हें विधानसभा तक पहुंचा दिया, लेकिन अब प्रागीलाल के खाते में ऐसा कुछ नजर नहीं आता जिसको भुनाकर वह विधानसभा की चौखट तक फिर से पहुंच सकें। प्रागीलाल का साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल भी जनता ने देखा है जिसमें उन पर भ्रष्टाचार सहित निष्क्रिय होने के आरोप न केवल जनता, बल्कि उनकी ही पार्टी के नेता तक लगा चुके हैं। बताया तो यहां तक जाता है कि वह तो केवल कठपुतली विधायक हैं, बल्कि उनकी चाबी तो किसी पूर्व विधायक के हाथों में रही इसलिए जनता को अब उनसे कोई उम्मीदें नजर नहीं आती।

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