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Saturday, September 16, 2023

भगवान महावीर ने मातृ-पितृ भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया


जैन साध्वियों ने बताया कि जब तक माता-पिता जीवित रहे उन्होंने नहीं ली दीक्षा, पर्यूषण पर्व में भगवान के जन्म का हुआ वाचन

शिवपुरी। मेरे जरा से कष्ट में मेरे माता-पिता विचलित हो जाते हैं तो जब मैं दीक्षा लूंगा तो उन पर क्या बीतेगी यह विचार कर भगवान महावीर ने संकल्प लिया कि जब तक उनके माता-पिता जीवित रहेंगे वे दीक्षा नहीं लेंगे और संसार में ही रहेंगे। इस तरह से भगवान महावीर ने मातृ-पितृ भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। उक्त बात प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने पर्यूषण पर्व के दौरान भगवान महावीर के जन्म का वाचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि भगवान महावीर के जीवन दर्शन को देखने से पता चलता है कि कर्मों का फल तीर्थंकर और भगवान को भी भोगना पड़ता है। कर्म फल से कोई नहीं बच पाता। भगवान महावीर के जन्म का जैसे ही वाचन हुआ वैसे ही आराधना भवन का हॉल भगवान महावीर के जय-जयकार के नारों से गुंजायमान हो उठा और धर्मप्रेमियों ने एक दूसरे को भगवान महावीर जन्मदिवस की बधाईयां दीं। इससे पूर्व आराधना भवन में भगवान महावीर की माँ द्वारा देखे गए चौदह सपनों की बोलियां भी लगाई गईं। 

शिवपुरी में प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज ठाणा 5 सतियों के निर्देशन में पर्यूषण पर्व धूमधाम, उत्साह और आनंद के साथ मनाया जा रहा है। पर्यूषण पर्व के दौरान तपस्याओं की झड़ी लग रही है। कई श्रावक और श्राविकाएं 8 उपवास की तपस्याएं कर रही हैं। प्रतिदिन उपवास, आयंविल और एकासने के आयोजन हो रहे हैं। सामयिक, संवर और प्रतिक्रमण किए जा रहे हैं। पांचवे दिन भगवान महावीर के जन्मोत्सव का वाचन हुआ। अंतगढ़ सूत्र का वाचन साध्वी पूनमश्री जी ने किया। साध्वी वंदनाश्री जी और साध्वी जयश्री जी ने भजनों के माध्यम से भक्ति रस की गंगा बहाई।

आज मनाया जाएगा आचार्य सम्राट शिवमुनि जी का जन्मदिवस
17 सितम्बर को आराधना भवन में आचार्य सम्राट शिवमुनि जी का जन्मदिवस प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के निर्देशन में मनाया जाएगा। इस अवसर पर व्रत, उपवास और धर्म आराधना कर आचार्यश्री को जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी जाएंगी। आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी जैन श्रमण संघ के प्रमुख हैं। पंजाब के मलौट नामक छोटे से गांव में जन्मे शिवमुनि ने प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की प्रत्येक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। छात्र जीवन के दौरान उन्होंने अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड आदि कई अन्य देशों की दूर-दूर तक यात्राएं कीं, लेकिन धन संपत्ति और भौतिक सुविधाएं उन्हें लुभाने और बांधने में विफल रहीं और उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग कर एक तपस्वी का जीवन अपनाने का दृढ़ संकल्प लिया। वह आचार्य आत्माराम जी के शिष्य थे। जैन जगत स्वयं को भाग्यशाली मानता है कि उन्हें आध्यात्मिक नेता एक ऐसा व्यक्ति मिला है जो इतना प्रबुद्ध तपस्वी इतना सरल और ध्यान में समर्पित है।

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