श्रीदिगम्बर जैन छत्री मंदिर पर आयोजित धर्मसभा में आर्शीवचनों में मनुष्य के जीवन कल्याण का मार्ग बतायाशिवपुरी- जिस व्यक्ति को दर्शन ज्ञान ना हो, सम्यक दृष्टि ना हो और सम्यक चरित्र ना हो उसका कल्याण संभव नहीं है यदि मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना है तो विकारों से दूर रहकर सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र होना आवश्यक है और इसे प्राप्त करने के लिए धर्म का मार्ग अपनाना होगा और इस मार्ग से होकर मनुष्य अपना आत्म कल्याण कर सकता है इसलिए प्रतिदिन मंदिर आना, पूजा करना और अपने व्यवहार को शालीन रखना यह भी आवश्यक है क्योंकि मनुष्य प्रवृत्ति में काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया, हिंसा, झूठ, परिग्रह तुरंत आता है इसलिए इनसे बचें और सद्मार्ग के लिए सम्यक दृष्टि को अपनाऐं।
सम्यक दृष्टि पर यह प्रकाश डाला स्थानीय श्रीदिगम्बर जैन छत्री मंदिर पर चार्तुमास कर रहे मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने जो मनुष्य को अपने आर्शीवचनों के द्वारा मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर रहे थे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी मौजूद रहे जिन्होंने अपनी कई जिज्ञासाओं का समाधान भी मुनिश्री के आर्शीवचनों में प्राप्त किया। इस अवसर पर मंगलाचरण समाजसेवी रामदयाल जैन के द्वारा किया गया जबकि दीप प्रज्जवलन पाठशाला के बच्चों के द्वारा किया गया और मुनिश्री से आर्शीवाद प्राप्त किया। मुनिश्री ने पाठशाला के बच्चों को ज्ञानोपार्जन लेकर आवश्यक प्रवचन भी दिए। चार्तुमास के दौरान मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज भी विशेष रूप से मंदिर परिसर में विराजमान है।
आत्मकल्याण का मार्ग किया प्रशस्त
मुनिश्री सुप्रभसागर ने वर्तमान परिवेश को लेकर अपने प्रवचनों में कहा कि आज का मनुष्य अपने शरीर की भांति कार्य नहीं कर रहा इसलिए परिग्रह व अन्य प्रकार के अपवादों से ग्रसित है जबकि मनुष्य का आत्मकल्याण उसके मन, विचार और कर्म ही करते है इसलिए आवश्यक है कि हृदय जिसे वात्सल्य का रूप कहा जाता है वहां से अपने भावों को प्रदर्शित करें और जन कल्याण व धर्म के कार्यों में आग्रणीय रूप से आगे आकर कार्य करें तब निश्चित ही सफलता और आत्म कल्याण होगा।
आत्मकल्याण का मार्ग किया प्रशस्त
मुनिश्री सुप्रभसागर ने वर्तमान परिवेश को लेकर अपने प्रवचनों में कहा कि आज का मनुष्य अपने शरीर की भांति कार्य नहीं कर रहा इसलिए परिग्रह व अन्य प्रकार के अपवादों से ग्रसित है जबकि मनुष्य का आत्मकल्याण उसके मन, विचार और कर्म ही करते है इसलिए आवश्यक है कि हृदय जिसे वात्सल्य का रूप कहा जाता है वहां से अपने भावों को प्रदर्शित करें और जन कल्याण व धर्म के कार्यों में आग्रणीय रूप से आगे आकर कार्य करें तब निश्चित ही सफलता और आत्म कल्याण होगा।
मुनिश्री ने शरीर के अंगों की कल्पना को साकार करते हुए बताया कि मानव शरीर के 8 प्रमुख अंग ऐसे है जिनसे प्रतिदिन स्वाध्याय व आत्म कल्याण के कार्य किए जाते है हाथ, पैर, नाक, हृदय, आंख यह वह अंग है जो प्रतिदिन अनेंकों कार्यों को करता है अब उसमें सरलता और कठिनता, अच्छा और बुरा यह मानव स्वभाव पर निर्भर करता है इसलिए जिनवाणी में सम्यक दृष्टि को ही सही बताया गया है जिसके द्वारा सम्यक दृष्टि, ज्ञान और चरित्र के द्वारा मोक्ष कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
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