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Saturday, August 19, 2023

नाबालिग को बालिग बनाकर लगाया चैक का दावा खारिज


शिवपुरी
- न्यायाधीश जे.एम.एफ.सी. श्री अमित प्रताप सिंह ने एक चैक का मामला निरस्ति कर दिया जिसमें परिवादी द्वारा अभियुक्त को बालिग बताकर न्याायालय के समक्ष दावा प्रस्तुत किया था जिसमें बाद में अभियुक्त के अधिवक्ताह भरत ओझा ने अभियुक्त के नावालिग होने के दस्तावेज पेश किये जिस पर से परिवादी का परिवाद निरस्त किया गया। उक्त प्रकरण में महत्व पूर्ण तथ्यि यह था कि परिवादी अभियुक्त को पहचानता भी नहीं था और परिवादी ने एक 16 वर्षीय नावालिग का चैक बैंक में प्रस्तुत कर बाउंस कराया और दावा न्यायालय में प्रस्तुत किया। मजेदार बात तो ये थी कि उक्त दावे में प्रस्तुत नोटिस जो अभियुक्त को भेजा गया था उसमें अभियुक्त की उम्र 47 वर्ष लेख की गयी थी जबकि अभियुक्त का खाता अव्यस्क् खाता था और वह नावालिग था। जिस समय खाता खुला उस समय उसकी उम्र 16 वर्ष थी और जब चैक का दावा लगाया उस समय पर भी अभियुक्त  नावालिग था। अभियुक्ती की ओर से पैरवी भरत ओझा एडवोकेट द्वारा की गयी।

संक्षेप में मामला इस प्रकार है कि परिवादी रविराज ने अपने दावे में बताया कि परिवादी रविराज शर्मा से अभियुक्त गिर्राज धाकड को 1 लाख रूपये नगद व्यवसाय एवं खेती के कार्य हेतु उधार प्राप्त किये थे जिसके भुगतान हेतु अभियुक्त ने 50-50 हजार के आई डी बी आई दो चैक परिवादी को दिये थे जिसे बैंक में प्रस्तुत करने पर बाउंस हो गये जिसका नोटिस परिवादी द्वारा अभियुक्त को दिया गया जिसमें अभियुक्त  की उम्र 47 वर्ष लेख की गयी थी इसके पश्चात परिवादी द्वारा धरा 138 एन आई एक्ट का दावा माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उक्त प्रकरण में अभियुक्त ने अपने अधिवक्ताय भरत ओझा के माध्य म न्या यालय में उपस्थित होकर अपनी जमानत प्रस्तु्त की। जमानत प्रस्तुत उपरांत अभियुक्त के अधिवक्ता भरत ओझा द्वारा न्यायालय के समक्ष धारा 26 एन आई एक्ट के तहत एक आवेदन प्रस्तुत किया साथ में अभियुक्त की कक्षा 5,8,10,12, की अंकसूची व वोटर कार्ड, आधार कार्ड एवं पेन कार्ड प्रस्तुत किये गये। 

साथ ही आवेदन में कहा गया कि अभियुक्त का खाता चाईल्ड का खाता है और उसकी उम्र 16 वर्ष है और जिस समय चैक का दावा न्यायालय में प्रस्तु्त किया उस समय भी अभियुक्त की उम्र 16 वर्ष थी और उस समय अभियुक्त नावालिग होकर अपनी पढाई कर रहा था और भी नावालिग किसी भी प्रकार का लेन देन व चैक का सम्व्यवहार नहीं कर सकता है और न ही उसके विरूद्ध कोई भी चैक का दावा न्यायालय में चल सकता है, खारिज करने का निवेदन किया। उक्त आवेदन पर से न्योयालय ने जांच प्रारंभ की और जांच में बैंक मेनेजर, अभियुक्त के पिता व स्कूल का एडमीशन रजिस्टर्ड मंगाया गया। उक्त सभी तथ्यों को ध्याय में रखते हुये न्यायालय ने यह पाया कि यह दावा गलत रूप से प्रस्तुत किया गया है, परिवादी अभियुक्त को जानता भी नहीं है और न ही अभियुक्त नावालिग की दशा में परिवादी से कोई समव्यवहार भी नहीं कर सकता है। इन आधारों पर न्यायालय ने परिवादी का परिवाद प्रचलनशील न होने से निरस्त कर दिया।

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