शैया पर पड़ा जन-जन का आदेश
व्ही.एस.भुल्ले विलेज टाईम्स समाचार सेवा म.प्र.
ब्याज, वेतन, भत्तों पर आय का अधिकांश भाग लुटा स्वयं को समृद्ध खुशहाल बनाने वाली सियासत आखिर इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है कि मंच के सामने मौजूद सभा में वह गर्व के साथ यह कहे कि सरकार सियासत, गांव, गरीब, किसान की है उनकी कृतज्ञता सिर्फ और सिर्फ सर्व कल्याण सेवा कल्याण और विकास में है। ऐसी लाजविहीन सियासत का नमूना शायद ही किसी समृद्ध, खुशहाल लोकतंत्र में देखने सुनने मिले जो हमारे लोकतंत्र में सुनने देखने चुनावों के दौरान मिलता है लगभग 14 फीसदी कुपोषित और 80 करोड़ के लगभग सस्ते राशन तथा 50 करोड़ स्वास्थ्य सेवा के मोहताज लोकतंत्र में हजारों की संख्या में जघन्न अपराधों में पंजीबद्ध जनप्रतिनिधि मौजूद हों और शेष लोग सुरक्षा, संरक्षण और सेवा के मोहताज ऐसे में विकास, सेवा कल्याण, सर्व कल्याण और लोकतंत्र के रक्षावीरों को आजादी के 72 वर्ष बाद जुमले सार्वजनिक जीवन की भ्रष्टता, बेमानी नहीं तो और क्या, खुशहाल जीवन समृद्धि के सपने के स्वप्न लोक से बाहर निकल आज के हर मतदाता युवा बुजुर्ग माता-बहिनो बच्चों को सोचना, समझना चाहिए व वोट मांगने वाले व दिलाने वालों से यह सवाल अवश्य करना चाहिए कि आखिर सुरक्षा, समृद्धि, सेवा कल्याण, स्वाभिमान, सर्व कल्याण किसे कहते है अगर आजादी से लेकर आज तक हम विकासशील कृषि प्रधान देश है या थे तो बताओ मालिक कौन हुआ? हमारे वोट से अगर सत्ता सरकार बनती है तथा हमारे जीवन उपयोग की वस्तुओं पर लगने वाले टैक्स से चलने वाला शासन नेता, मंत्री अधिकारियों को मिलने वाले वेतन भत्तों का दाता कौन हुआ? हम वोट देने वाले और हमारे अपने ही तो हैं, इस देश की जनता किसान व्यवसाई तो आजादी के पूर्व से दाता रहे है जो फसल आने पर हर कर्मगार का हिस्सा उपहार स्वरूप वर्ष, तीज-त्यौहार पर नि:शुल्क बिना मांगे देता था, व्यापारी भी आयोजनों में चंदा और तीज त्यौहारों पर दान पुण्य करता था। पशुधन भूखा-प्यासा ना रहे इसलिए हर गांव-नगर में शुद्ध पेयजल के साथ निस्तारी तालाब, गौचर भूमि, सार्वजनिक कुंओं का साधन हुआ करता था। गांव की पंचायत चौपालो पर ही कई विवादित मामले सम्मानजनक सुलझ जाते थे किसी में असुरक्षा का भाव छोड़ खतरनाक जंगली जानवरों के नहीं होता था, सत्ताऐं भी अपना हिस्सा लगान स्वरूप धन और खाद्यान्न के रूप में लेने हमारे गांव चौपाल घर तक आती थी मगर आजादी के बाद तालाब, कुऐं, सूख लिए अन्य का दानदाता सस्ते राशन व फ्री की स्वास्थ्य सेवा का मोहताज तो हमारा पशुधन गौचर विहीन निस्तारी तालाब विहीन हो लिया। गांव-गली पनपने अपराध, अपराधी, माफियाओं का सेवा कल्याण, सर्व कल्याण में समृद्ध जीवन खुशहाल समृद्धि का मोहताज हो गया, आखिर क्यों? मतदान से पूर्व जाति-धर्म, दल, व्यक्ति विशेष को भूल अवश्य इन सवालों पर आम मतदाता को विचार चर्चा करना चाहिए। आखिर लाखों रूपये फूंक लग्जरी वाहनों और चौपरों की घन-घनाहट में लाखों रूपये फूंक आए दिन आसमान से उतर सेवा कल्याण का कॉल उठाने वाले लोकतंत्र के भाग्य विधाता कब जन-जन को बताऐंगें कि सेवा कल्याण के लिए लाखों फूंकने का अर्थ क्या है? चूंकि लोकतंत्र हमारी आत्मा है इसे हमने शहर अंगीकार किया है और इसमें हमारी गहरी आस्था है। हमारे अपनों ने हमारे समृद्ध खुशहाल स्वच्छंद जीवन की आस में अपना बचपन जवानी लुटा बड़े कष्ट सहे है, महामानवों नेताओं ने बेरहम कष्ट सह बड़ी कुर्बानियां दी है इसलिए हमें अधिक से अधिक मतदान कर अच्छे-सच्चे व्यक्ति को चुनना चाहिए जिससे हम अपने पूर्वजों का सम्मान स्वाभिमान की रक्षा कर उनकी कृतज्ञता को कलंकित ना होने दें और लोकतंत्र और मानव जीवन को सशक्त समृद्ध स्वस्थ खुशहाल बना सके।
जय स्वराज
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