श्रीदिगम्बर जैन छत्री मंदिर पर चातुर्मास के दौरान धर्मसभा में बताया धर्म का महत्वशिवपुरी-मनुष्य को अपने जीवन में यदि सफलता और शांति चाहिए तो इसके लिए धर्म के मार्ग पर चलना होगा, नि:संदेह यह मार्ग कहीं ना कहीं व्यक्ति के मन को विचलित करता है लेकिन एकाग्रता और शांतिचित्त से धर्म के पथ पर चलते रहना चाहिए, धर्म के मार्ग पर चलने से हमेशा व्यक्ति को पुण्य लाभ मिलता है इसलिए सदैव धर्म के बताए मार्ग पर चलें और अपने जीवन को सार्थक करें। उक्त आर्शीवचन दिए प्रसिद्ध मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने जो स्थानीय गुरूद्वारा रोड़ स्थित श्रीदिगम्बर जैन छत्री मंदिर में चार्तुमास के दौरान आयोजित धर्मसभा में दिए। इस अवसर पर मुनिश्री के प्रवचनो के पूर्व मंगलाचरण रामदयाल जैन (मावा वाले)व महिला समिति के द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। इसके साथ ही मुनिश्री के दर्शन उपरांत आर्शीवचनों की श्रृंखला का प्रारंभ हुआ।
धर्म हमेशा सद्मार्ग दिखाता है
अपने आर्शीवचनों में मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने कहा कि धर्म हमेशा सद्मार्ग दिखाता है, मनुष्य को केवल अपने आत्मकल्याण के लिए नहीं अपितु समस्त प्राणियों के लोकहित हेतु धर्म का मार्ग अपना चाहिए। यहां मुनिश्री ने विभिन्न कथाओं और वृतान्तों के द्वारा धर्म के ज्ञान का महत्व भी श्रद्धालुओं को बताया।
सामाजिक व्यवस्था संचालन का अंग है जाति व्यवस्था
मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज के द्वारा सामाजिक व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पूर्व समय से समाजिक व्यवस्था के संचालन हेतु जाति व्यवस्था बनाई गयी है कि वह भिन्न-भिन्न जातियों के साथ शादी विवाह समारोह पश्चात इस संसारी दुनिया में समान ना हो और भिन्न-भिन्न तरह के लोग हो। यहं पूर्वजो की अनुकूल व्यवस्था है। शारिरिक व्यवस्था से ही संस्करों को भी दिशा मिलती है।
जब भी विवाह होता है तो लड़का-लड़की और परिवार को देखा जाता है और इस सामांजस्य को बनाए रखने हेतु समाज व परिवार के 5 प्रमुख लोगों को बिठाया जाता है जो अपनी-अपनी भूमिका को निभाते है, जिसमें गलती करने वालो को सजा भी दी जाती है और समाज में सम्मिलित भी किया जाता है लेकिन वर्तमान समस्य में युवा पीढि़ के इस दौरा में जाति और धर्म व्यवस्था ध्वस्त नजर आती है हमे धर्म की रक्षा करना चाहिए, योग्य को आगे बढ़ाना चाहिए और इससे युवाओं को जोडऩा होगा तभी यह सामाजिक व्यवस्था सुदढ़ बनी रह सकेगी।
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