प्रोफेसर सिकरवार सर और उनके शिष्यों का अद्भुत भावनात्मक जुड़ाव अपनी यादों में लेकर काशी जाऊँगा : विधायक रमेश जायसवाल
प्रोफेसर सिकरवार सर के लेक्चर के समय पूरी क्लास हाउसफुल हुआ करती थी, वे हमारी यादों का अभिन्न हिस्सा हैं - गायत्री शर्मा
शिवपुरी- प्रोफेसर चन्द्रपाल सिंह सिकरवार सर से मिलने का सौभाग्य मुझे कभी नहीं मिला, लेकिन आज इस कार्यक्रम में आकर सर के विषय में यहाँ यह सब सुनकर मुझे अनुभूति हो रही है कि मानो मैं उनके साथ उनकी दैवीय उपस्थिति में उन्हें जी रहा हूँ. उक्त उदगार मुख्य अतिथि की आसंदी से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उत्तरप्रदेश के पं. दीनदयाल उपाध्याय नगर अर्थात मुग़लसराय विधानसभा के विधायक रमेश जैसवाल ने प्रोफेसर चन्द्रपाल सिंह सिकरवार स्मृति सम्मान समारोह में व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि मूल्य-आधारित शिक्षा पद्धति में गुरु-शिष्य संबंधों की जो भावदृष्टि होती है, प्रोफेसर सिकरवार सर और उनके विद्वान शिष्यों का उनसे जो भावनात्मक जुड़ाव है उसे मैं यहाँ आकर महसूस कर रहा हूँ और इस अद्भुत जुड़ाव को अपनी यादों में सहेजकर मैं काशी ले जाऊँगा. उन्होंने कहा कि जहाँ कहीं भी आदर्श शिक्षक और आदर्श प्राध्यापक की बात चलेगी तो मैं गर्व के साथ प्रोफेसर सिकरवार सर का नाम लेकर जगह-जगह कई मंचों से यह कह सकूँगा कि शिवपुरी की धरती पर एक ऐसे भी गुरु रहे हैं.
         कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण देते हुए विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी संस्थान राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डायरेक्टर प्रोफेसर राकेश सिंघई ने कहा कि प्रोफेसर सिकरवार सर ने इस अंचल में शिक्षा और संस्कारों के बीजारोपण के पुनीत कार्य में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. एक प्राध्यापक के परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा की इस पराकाष्ठा के लिए इस शहर के लोगों के मन में जो अद्भुत आदर और सम्मान उनके प्रति है, उसे देखकर गुरु शिष्य परम्परा का गौरवशाली अतीत मेरी स्मृतियों में साकार हो रहा है.
           बतौर विशिष्ट अतिथि कार्यकम को संबोधित करते हुए नगरपालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा ने कॉलेज जीवन के अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि प्रोफेसर चन्द्रपाल सिंह सिकरवार सर से पढ़ने का सौभाग्य उन्हें हासिल हुआ है. सर का लेक्चर सुनने के लिए जब हम कॉलेज की क्लास में जाया करते थे तो पूरी क्लास हाउसफुल हुआ करती थी. जो विद्यार्थी कॉलेज में उधम किया करते थे वे भी उनकी क्लास में अनुशासित ढंग से बैठकर क्लास लिया करते थे. हम लड़कियों को कई बार ऐसा होता था जब क्लास में बैठने के लिए जगह नहीं मिल पाती थी. उन्होंने कहा कि नगरपालिका के चुनाव में  अध्यक्ष का फॉर्म भरने जब मैं कॉलेज गयी तो प्रोफेसर सिकरवार सर की यादें फ्लैशबैक में सामने आ गयीं और यूँ लगा कि बस मानो कॉलेज के इस ओर से अभी सिकरवार सर आ जाएंगे. प्रोफेसर सिकरवार सर यादों में इतना गुँथे हुए हैं कि रह-रहकर अक्सर याद आ जाया करते हैं.
          कार्यक्रम की शुरुआत प्रेरणा गीत से लॉ स्टूडेंट वैष्णवी तिवारी ने की. कार्यक्रम में प्रोफेसर सिकरवार सर के जीवन पर केंद्रित गीत की प्रस्तुति शिक्षा शर्मा ने दी. स्वागत भाषण डॉ. आर.आर. धाकड़ ने दिया. प्रोफेसर सिकरवार सर का जीवन-वृत तरुण अग्रवाल ने रखा. कार्यक्रम के संचालन की कमान प्रोफेसर पल्लवी गोयल ने संभाली. आभार जनपद पंचायत सीईओ ऑफिसर सिंह गुर्जर ने व्यक्त किया.
अभावों को जीते हुए पूरा जीवन जद्दोजहद करने वाले  रियल पर्यावरण सेलिब्रिटी जयराम मीणा को मिला नौवाँ स्मृति सम्मान -
         जल, जंगल और जमीन को बचाने में जिंदगी के अभावों को जीते हुए अपना पूरा जीवन जद्दोजहद करने वाले  रियल पर्यावरण सेलिब्रिटी जयराम मीणा को इस बार के नौवे प्रोफेसर चन्द्रपाल सिंह सिकरवार स्मृति सम्मान 2023 से सम्मानित किया गया. पीएस रेसिडेंसी में कल देर शाम आयोजित कार्यक्रम में पर्यावरण एवं सामाजिक कार्यकर्ता जयराम मीणा को यह सम्मान उत्तरप्रदेश के चांदोली जिले की मुग़लसराय विधानसभा के विधायक रमेश जायसवाल, विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी संस्थान राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डायरेक्टर प्रोफेसर राकेश सिंघई, मध्यप्रदेश पाठ्यपुस्तक निगम के उपाध्यक्ष राज्य मंत्री प्रहलाद भारती एवं नगरपालिका शिवपुरी की अध्यक्ष गायत्री शर्मा ने प्रदान किया.
वृक्षारोपण के जुनून को मूर्त रूप देने के लिए साइकिल पर बाल्टी में पानी लेकर कई किलोमीटर तक जाकर पौधों को पानी से सींचते हैं जयराम मीणा -
        पर्यावरण एवं सामाजिक कार्यकर्ता 'जयराम मीणा' चौथी क्लास तक पढ़े हैं, लेकिन उनका जीवन इतने व्यापक कर्तव्यबोध से भरा हुआ है कि अभावों के बीच कष्टप्रद जीवन जीते हुए भी पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के मिशन में उन्होंने अपना जीवन खपाया हुआ है. बीते 40 वर्षों से जयराम मीणा अपने दादाजी की याद में अपने घर के परिसर से लेकर गांव के आसपास के क्षेत्र में निरंतर पेड़-पौधे लगाने के मिशन में जी-जान से, पूरे जुनून के साथ जुटे हुए हैं और अब तक 11 लाख से अधिक पौधों को जमीन में रोपित कर चुके हैं. वृक्षारोपण के अपने जुनून को मूर्त रूप देने के लिए अपनी साइकिल पर बाल्टी में पानी लेकर वे दूर-दूर तक, कई-कई किलोमीटर तक जाकर पौधों को पानी दिया करते हैं.
       वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के मिशन में जी-जान से जुटे होने के कर्तव्यबोध के लिए जयराम मीणा को वर्ष 2006 में प्रतिष्ठित अमृता देवी विश्नोई अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है. जयराम मीणा जी के वृक्षारोपण के इस मिशन की अद्भत प्रेरणा से भर देने वाली रोमांचक कहानी 'इंडिया टुडे' मैगजीन में "खुशी की तलाश" सेगमेंट के अंतर्गत दिसम्बर 2021 के संस्करण में प्रकाशित हुई है. इंडिया टुडे का यह सेगमेंट समाज जीवन में प्रसन्नता को व्यापक फलक पर प्रसारित करने वाली अनुकरणीय पहलों को रेखांकित करता है.
         आज जिस दौर में हम हैं वहाँ अगर आपके पास पैसा है, साधन हैं, तो सब ठीक है, और अगर पैसा नहीं है, साधन नहीं हैं तो सब कुुुछ खत्म है - एक ऐसी असुरक्षा का भाव और विचार हम सबके मन में भर दिया गया है. लेकिन ऐसे दौर में भी जयराम मीणा जैसे कुछ महनीय व्यक्तित्व हैं जो अपने मन का अनहद तलाशने के ध्येय से अभावों के बीच रहकर भी देश और समाज की सेवा में अपने जीवन को समर्पित किए हुए हैं. समर्पण की इसी पराकाष्ठा के लिए जयराम मीणा को प्रोफेसर चन्द्रपाल सिंह सिकरवार स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया.
वृक्षारोपण के जुनून को देखकर एक समय परिवार और दोस्तों को लगता था कि जयराम मीणा पागल हो गए हैं -
      एक समय ऐसा भी था जब जयराम मीणा के परिवार के लोगों, दोस्तों यहां तक कि उनकी पत्नी और बच्चों को भी उनके पेड़-पौधे लगाने के जुनून को देखकर लगता था कि वे मानसिक रूप से बीमार हो गए हैं, पागल हो गए हैं. बाद में सभी को यह महसूस हुआ कि पेड़ पौधे लगाने का उनका यह जो जुनून है वह कोई मानसिक सनक भरा उपक्रम नहीं है, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में काम करने का उनका एक पावन संकल्प है. 
जयराम मीणा के गांव जाने वाली सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ उनके जुनून और मिशन के गवाह -
एक छोटे किसान परिवार की पृष्ठभूमि से आने वाले जयराम मीणा को वृक्षारोपण के इस मिशन पर किए जा सकने वाले खर्च का अपने परिवार के जीवन-यापन की स्थिति को देखते हुए ख्याल रखना पड़ता है. जयराम जी के गांव की ओर जाने वाली सड़क के दोनों किनारों पर नीम और बरगद के ढेर सारे पेड़ लगे हुए हमें दिखते हैं. ये सारे पेड़ जयराम मीणा के उनके मकसद में, उनके जुनून और उनके मिशन में जी-जान से जुटे होने की गवाही देते हैं.
पर्यावरण संरक्षण के विचार को दिन-रात पिछले 40 सालों से जीवन में जी रहे हैं जयराम मीणा -
जयराम मीणा पर्यावरण पर लच्छेदार भाषण देना नहीं जानते हैं और ना ही देना चाहते हैं. वे पर्यावरण पर औरों को कुछ करने की राय या सलाह भी नहीं देते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के विचार को दिन-रात पिछले 40 सालों से खुद अपने जीवन में, अपने आचरण में जीते चले आ रहे हैं.
मेरे वृक्षारोपण के जुनून से तंग आकर पत्नी भी मुझे छोड़कर मायके चली गयी थी, अब सहयोग करती है : जयराम मीणा
       जयराम मीणा ने प्रोफेसर सिकरवार स्मृति सम्मान से सम्मानित होने के उपरांत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि वृक्षारोपण के मेरे इस संकल्प को निभाने के लिए जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ा है. परिवार के लोग, दोस्त, गांव वाले शुरुआत में सब उन्हें पागल समझते थे. यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर मायके चली गयीं थीं. लेकिन वे अपने जुनून और मिशन पर अडिग बने रहे. बाद में जब 2006 में उन्हें मप्र सरकार का प्रतिष्ठित अमृता देवी विश्नोई अवार्ड मिला तो उन्हें उस अवार्ड को लेने के लिए साधन ना होने से कोटा होकर भोपाल जाने में दो दिन लगे. जब वे वापिस घर पहुंचे तो उनकी पुरस्कार राशि 50,000 रुपये उनके गांव पहुंचने से पहले ही पहुंच चुकी थी. अब पत्नी, बच्चे और सब गांववाले उनके इस मिशन में उनका सहयोग करते हैं.परिवार के लोग प्याऊ भी लगाते हैं. 
जयराम मीणा ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि गांव के लोग पहले कहते थे कि गांव में पीने के लिए और खेती के लिए पानी नहीं है, पेड़ पौधों के लिए पानी कहाँ से आएगा? इसलिए शुरुआत में लोग पेड़-पौधे लगाने नहीं देते थे. फिर उन्होंने गांव में घर पर ही पौधों की एक छोटी सी नर्सरी तैयार की. जहाँ वृक्षारोपण के लिए पौधे तैयार करते हैं. इस काम में गांव के बच्चों की भी मदद वे लेते हैं. मौसम आने पर जब नीम के पेड़ पर फल लगते हैं तो वे गांव के बच्चों से उन्हें इकट्ठा करके लाने के लिए कहते हैं. बदले में उन्हें बिस्किट देते हैं. अंकुरित पौधों को वे एकत्रित की गई पॉलिथीन की थैलियों और प्लास्टिक के कंटेनरों में लगाते हैं. बहुत सारे उर्वरक, पेस्टिसाइड्स प्लास्टिक की बोतलों और पैकेट में आते हैं. इनका उपयोग करने के बाद लोग आमतौर पर उन्हें फेंक देते हैं.
न्यायिक सेवा में चयनित अभ्यर्थियों का भी हुआ सम्मान -
        कार्यक्रम में मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा में सिविल जज के रूप में चयनित अभ्यर्थियों कु. प्रियंका दाँगी, शुभम द्विवेदी, कु. नेहा परिहार, शुभम जैन एवं मृदुल जैन को भी प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया. सिविल जज सम्मान कार्यक्रम का समन्वय भरत भार्गव ने किया. 




 
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