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Monday, December 30, 2024

सोये हुये अरमानों को चिंगारी बनाने वाले कवि दुष्यन्त जयंती पर आयोजित हुई काव्य गोष्ठी


शिवपुरी-
म.प्र. लेखक संघ शिवपुरी इकाई द्वारा हिंदी कवि,कथाकार और गज़लकार दुष्यन्त कुमार जी की पुण्यतिथि पर दुर्गा मठ मे कवि अवधेश सक्सेना की अध्यक्षता साहित्य सेवी माधवशरण द्विवेदी और उस्ताद शायर इशरत ग्वालियरी के विशेष आथित्य मे काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसके प्रथम चरण मे दुष्यन्त कुमार जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुये जाने माने गज़लकार डॉ महेंद्र अग्रवाल ने कहा कि उनकी ग़जलें अपने परिवेश की जीवंत प्रस्तुति हैं,और परिवेश के विरुद्ध संघर्षरत व्यक्ति की प्रतिक्रियाएँ भी। और उनकी विशेषता साधारण शब्दों मे असाधारण भावों को सहजता और सरलता से व्यक्त करना उनकी ग़ज़ल का प्रधान गुण था,"हमको पता नही था हमे अब पता चला,इस मुल्क मे हमारी हुकूमत नही रही"।डॉ मुकेश अनुरागी ने अपने वक्तव्य मे उनकी ही ग़ज़ल को कोट करते हुए कहा "मेरे सीने मे नही, तो तेरे सीने मे ही सही,हो कहीं भी आग लेकिन,आग जलनी चाहिये।"। श्याम  शास्त्री ने दुष्यंत जी को क्रांति का कलमकार बताया।गोष्ठी का संचालन कर रहे अजय जैन अविराम ने दुष्यन्त जी के व्यक्तित्व को वर्जनाओं को तोड़ कर सत्य को निरूपित करने वाला कहा। इस तरह सभागार मे उपस्थित   सभी कलमकार श्रोताओं ने शब्द और भावों से दुष्यन्त जी को याद किया। काव्य गोष्ठी के दूसरे चरण का आरंभ डॉ मुकेश अनुरागी द्वारा माँ शारदा के आह्वान से किया गया, इसके बाद गोष्ठी की प्रथम रचनाकार के रूप मे कल्पना सिनोरिया ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुये कहा "रात शिशिर की हमने काटी तारों के संग मेड़ों पे,

अधरों पर मुस्कान धरें और बरखा नैन समाई है।"जिसे सुधी श्रोताओं ने खुब सराहा, इसके बाद संजय शाक्य जी ने अपनी बात रखते हुये कहा "तेरी इमदाद की दरकार मौला,मुखालिफ हैं बहुत इसबार मेरे।।" इस बेहतरीन कलाम के बाद प्रकाश चंद सेठ ने अपनी बात रखते हुये कहा कि" स्वयं को तो तोला नहीं है वर्षों से,तराजू में पासंग की वकालत करता है।"मानववृत्ति की इस अभिव्यक्ति को सुन सदन श्रोताओं की वाह और तालिया गूंज उठी। राजकुमार चौहान ने अपनी अभिरंजना व्यक्त करते हुए कहा बीती यादें आ जाती हैं, मन की कलियां मुस्काती हैं।होतीं बातें रुनझुन रुनझुन, घाव अकेले सहलाती हैं।। वहीं संस्था के नवीन सदस्य शिव कुमार राय 'अर्जुन' ने सुनाया"रहे न हम यहां पर ये तुम्हे मालूम तो होगा, क्या होगा आखरी दस्तूर रुखसत का,तुम्हे मालूम तो होगा।"वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मुकेश अनुरागी ने घटित सच्चाई के व्यक्त करते हुये कहा कि"अंधी दौड़ में उलझे हो, कैसे गांव दूंगा मैं।                    

सभी तो काट डाले पेड़, कैसे छांव दूंगा मैं।"संस्था के अध्यक्ष डॉ महेंद्र अग्रवाल ने व्यवस्था पर चोट करते हुये कहा "उम्मीद की किरन भी सलामत नहीं रही,वो सरपरस्त सर पे मगर छत नहीं रही,कुछ भेड़िये-सियार सियासत में आ गए,क़ानून की कहीं भी तो दशहत नहीं रही। जिसे सुन तालियों से गूंज उठा पूरा सदन,फिर बसंत श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा "रहते हैं अस्वस्थ यहां पर हमने जाना परखा है, आओ लौट चलें अब गांव शहरों मे क्या रक्खा है।वही संस्था के उपाध्यक्ष नवगीतकार उपान्यासकार गोविंद अनुज जी ने कहा "मन की शंका और कुशंकाओ को मौन किया।बडे दिनो के बाद अचानक तुमने फोन किया।

शिवपुरी साहित्य की ख्याति अन्य शहरों मे बढ़ा रहे सुकून शिवपुरी प्रदीप ने सुनाया कि "वो सीढियां चढ़ने का हुनर क्या जाने,जो लिफ़्ट से पहुंचा है अपनी मंज़िल पर।" "संचालन कर रहे अजय जैन अविराम ने यह कहते हुये माहौल मे ऊर्जा का संचार करते हुये कहा कि "वो ही धर्म धनुष को थामे,धर्म बिना न जीने का,वो ही तो बोलेंगे जिन मे,साहस विष के पीने का।"श्याम शर्मा शास्त्री ने भावनात्मक अभिरंजना उकेरते हुये कहा "बेटियाँ चली जाती है एक ही दिन में। महीनों तक उनकी विदाई नहीं जाती।" गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अवधेश सक्सेना ने अपनी काव्य प्रस्तुति मे बेबाक तरीके से कहा "अमन की बात करते ही जिन्हें कई बार देखा है, उन्हीं के हाथ लहराता हुआ हथियार देखा है।"जिसे हर एक श्रोता ने तालियां बजाकर सराहा। अंत मे डॉ मुकेश अनुरागी जी ने गोष्ठी मे पधारे सभी गणमान्य जनों का आभार प्रकट गोष्ठी को पूर्णता प्रदान की।

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