चांद दिखने के बाद पति की पूजा कर खोला गया निर्जला व्रत, उत्साह-उमंग के साथ मना करवाचौथ का व्रतशिवपुरी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को करवाचौथ मनाने की परंपरा है और 4 नबवंर बुधवार को यह पर्व बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाया गया। इस दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जला और निराहार रहकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हुई नजर आई और रात में चांद देखकर अघ्र्य अर्पित करने के बाद पति के हाथ से पानी पीने के साथ अपना व्रत खोला गया। आज के दिन चतुर्थी माता और गणेश जी की पूजा करने की भी परंपरा है और सुहागिन स्त्रियां उनकी पूजा की तैयारी में सुबह से ही जुट गईं। सुहागिनों का पर्व करवाचौथ आज बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया जिसे लेकर महिलाएं कई दिनों से तैयारियों में जुटी हुई थी।
करवाचौथ से पूर्व बाजारों में भी रौनक आ जाने से दुकानदार भी खुश हैं। सर्वाधिक ज्वैलर्स, कपड़ो व जनरल स्टोर पर देखी गई। वहीं ब्यूटीपार्लरों पर भी भीड़ पिछले कई दिनों लगी हुई नजर आई। इसके अलावा महिलाएं करवाचौथ व्रत और पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों की खरीददारी कर रही थी तब बाजार गुलजार होता हुआ नजर आया। सर्वाधिक उत्साह इस व्रत को लेकर नवविवाहिता महिलाओं में देखा गया। जिनकी इस वर्ष पहली करवाचौथ है। देर सायं को मिष्ठाई की दुकानों पर लोगों की भीड़ उमड़ी और व्रत खुलवाने के समय प्रयोग की जाने वाली मनपसंद मिठाई को लोग खरीदते हुए नजर आए। शहर के माधवचौक स्थित प्रेम स्वीट्स, मधुरम स्वीट्स, लड्डूवाला, नत्थू हलवाई जैसी प्रसिद्ध दुकानों पर लोग मिठाई के काउन्टरों पर पहुंचे और अपनी पसंदीदार मिठाई की खरीद की।
बड़ा आर्टिफिशियल मेहंदी का चलन
हाईटैक होते युग में त्योहार एवं परंपरायें जरूर कायम हैंए लेकिन इनके स्वरूप पर आधुनिकता हावी होती जा रही है। जहां पर परागत रूप से करवाचौथ से पूर्व महिलायें देर रात तक हाथों में मेहंदियां रचातीं देखीं जाती थीं वहीं अब आर्टिफिशियल मेहंदी का प्रयोग चलन में आ गया हैएजहां महिलायें बाजार में उपलब्ध आर्टिफिशियल टैटो मेहंदी की ओर आकर्षित हो रही हैंए क्योंकि इसमें समय की बचत होती है। इसके अलावा बाजार में रेडिमेड मेहंदी कॉन भी उपलब्ध हैं। जिनका उपयोग भी अब बढ़ रहा है।
बदल गया करवा का स्वरूप
करवाचौथ के व्रत में जिस चीज का पूजा के लिहाज से सर्वाधिक महत्व है वह है मिट्टी से निर्मित करवाए लेकिन आधुनिकता का रंग इन करवा पर भी दिखने लगा है। यही कारण है कि पुराने जमाने में जहां माटी के सामान्य से दिखने वाले करवा ही चलन में होतेे थे तो वहीं अब शक्कर से निर्मित आकर्षक रंगों से लवरेज करवाओं का चलन बढ़ा है। जहां माटी के करवा महज 10 से 20 रूपये के बीच उपलब्ध हैं तो वहीं शक्कर के आकर्षक करवे 20 रूपये से लेकर 100 रूपये की दरों पर बेचे जा रहे हैं।
इस तरह की पूजा
करवाचौथ की देर शाम को जहां पूजा इस तरह की गई कि पूजा स्थल पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और भगवान श्री गणेश की स्थापना की गई, चौथ माता की फोटो लगाकर पूजन के स्थान पर मिट्टी का करवा भी रखे गए, करवे में थोड़ा सा पानी भरकर दीपक से ढंककर एक रूपए का सिक्का रखा उसके ऊपर लाल कपड़ा रखकर पूजा सामग्री से सभी देवताओं की पूजा की गई। इसके बाद लड्डुओं का भोग लगाया और आरती की गई, जब चंद्रोदय हुआ तो चंद्रमा की पूजा कर चंद्रमा को अघ्र्य देकर फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाए, इसके बाद पति के चरण छुकर उनके मस्तक पर तिलक लगाते हुए पति की मां (सासु मां)को अपना करवा भेंट करें और आर्शीवाद लिया गया।
बड़ा आर्टिफिशियल मेहंदी का चलन
हाईटैक होते युग में त्योहार एवं परंपरायें जरूर कायम हैंए लेकिन इनके स्वरूप पर आधुनिकता हावी होती जा रही है। जहां पर परागत रूप से करवाचौथ से पूर्व महिलायें देर रात तक हाथों में मेहंदियां रचातीं देखीं जाती थीं वहीं अब आर्टिफिशियल मेहंदी का प्रयोग चलन में आ गया हैएजहां महिलायें बाजार में उपलब्ध आर्टिफिशियल टैटो मेहंदी की ओर आकर्षित हो रही हैंए क्योंकि इसमें समय की बचत होती है। इसके अलावा बाजार में रेडिमेड मेहंदी कॉन भी उपलब्ध हैं। जिनका उपयोग भी अब बढ़ रहा है।
बदल गया करवा का स्वरूप
करवाचौथ के व्रत में जिस चीज का पूजा के लिहाज से सर्वाधिक महत्व है वह है मिट्टी से निर्मित करवाए लेकिन आधुनिकता का रंग इन करवा पर भी दिखने लगा है। यही कारण है कि पुराने जमाने में जहां माटी के सामान्य से दिखने वाले करवा ही चलन में होतेे थे तो वहीं अब शक्कर से निर्मित आकर्षक रंगों से लवरेज करवाओं का चलन बढ़ा है। जहां माटी के करवा महज 10 से 20 रूपये के बीच उपलब्ध हैं तो वहीं शक्कर के आकर्षक करवे 20 रूपये से लेकर 100 रूपये की दरों पर बेचे जा रहे हैं।
इस तरह की पूजा
करवाचौथ की देर शाम को जहां पूजा इस तरह की गई कि पूजा स्थल पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और भगवान श्री गणेश की स्थापना की गई, चौथ माता की फोटो लगाकर पूजन के स्थान पर मिट्टी का करवा भी रखे गए, करवे में थोड़ा सा पानी भरकर दीपक से ढंककर एक रूपए का सिक्का रखा उसके ऊपर लाल कपड़ा रखकर पूजा सामग्री से सभी देवताओं की पूजा की गई। इसके बाद लड्डुओं का भोग लगाया और आरती की गई, जब चंद्रोदय हुआ तो चंद्रमा की पूजा कर चंद्रमा को अघ्र्य देकर फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाए, इसके बाद पति के चरण छुकर उनके मस्तक पर तिलक लगाते हुए पति की मां (सासु मां)को अपना करवा भेंट करें और आर्शीवाद लिया गया।
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