शिवपुरी-1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर यादव सैनिकों की शहादत को नमन करने और लंबे समय से लंबित 'अहीर रेजिमेंटÓ की मांग को बुलंद करने के उद्देश्य से निकाली जा रही रेजांगला शौर्य यात्रा शनिवार को जिला मुख्यालय शिवपुरी पहुंची। जहां स्थानीय मानस भवन गांधी पार्क परिसर में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा द्वारा आयोजित इस यात्रा का शहर में भव्य स्वागत हुआ। इस अवसर पर अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा जिलाध्यक्ष नरहरि प्रसाद यादव, युवा जिलाध्यक्ष अमित यादव, महिला अध्यक्ष श्रीमती नेहा यादव सहित भारतीय सेना से सेवानिवृत्त सैनिक एवं बड़ी संख्या में यादव समाज बन्धु मौजूद रहे।शहीदों की पवित्र मिट्टी से भरा कलश
यात्रा में शामिल शहीदों की पवित्र मिट्टी से भरे कलश को शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए झाँसी तिराहा स्थित राधा कृष्ण मंदिर तक ले जाया गया। इस दौरान अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के जिलाध्यक्ष नरहरि प्रसाद यादव, महिला जिलाध्यक्ष श्रीमती नेहा यादव, युवा जिलाध्यक्ष अमित यादव सहित समाज के कई पदाधिकारी और सदस्य मौजूद रहे। इस सफल आयोजन के पीछे महासभा के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश यादव दादा, कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष बलवीर सिंह यादव और प्रदेश प्रधान महासचिव वीरेन्द्र सिंह यादव का मार्गदर्शन रहा। यह आयोजन न केवल शहीदों को याद करने का एक अवसर था, बल्कि समाज को एकजुट होकर अपनी मांगों को प्रभावी ढंग से रखने का भी एक मंच बन गया।
'अहीर रेजिमेंट हक हमारा" के लगे नारे
मानस भवन से एक विशाल चल समारोह और वाहन रैली भी निकाली गई, जिसमें लोगों ने पूरे जोश के साथ अहीर रेजिमेंट हक हमारा के नारे लगाए। यह नारा न केवल शहीदों के बलिदान को श्रद्धांजलि दे रहा था, बल्कि भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग को भी मजबूती से उठा रहा था। यह यात्रा 12 अप्रैल 2024 को बिहार के बिहार प्रदेश के छपरा से शुरू हुई थी और पूरे देश का भ्रमण कर रही है। शिवपुरी के बाद यह यात्रा करैरा, पिछोर, और खनियाधाना होते हुए चंदेरी की ओर रवाना हुई। बताया गया कि यह यात्रा 18 नवंबर 2025 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़े आयोजन के साथ समाप्त होगी, जहां शहीदों को याद किया जाएगा।
रेजांगला युद्ध और अहीर रेजिमेंट की मांग
अहीर रेजिमेंट की मांग का मुख्य कारण 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला की लड़ाई में अहीर सैनिकों की असाधारण वीरता और बलिदान है। इस युद्ध में 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 में से 114 सैनिक अहीर समुदाय से थे। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों और सीमित गोला-बारूद के बावजूद चीनी सेना का बहादुरी से मुकाबला किया और सैकड़ों चीनी सैनिकों को मार गिराया। इस शौर्य गाथा के बाद से ही अहीर समुदाय अपने नाम पर एक अलग रेजिमेंट की मांग कर रहा है, ठीक उसी तरह जैसे जाट, सिख, राजपूत और गोरखा जैसी अन्य जातियों की रेजिमेंट हैं। यह यात्रा इसी ऐतिहासिक बलिदान को याद करते हुए समुदाय की इस मांग को राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूत करने का प्रयास है।
No comments:
Post a Comment