वीरेन्द्र शर्मा
जिस तरह की आजादी का भोग विगत 30 वर्षों में आजाद भारत की मानवता ने भोगा है और जिस कृतज्ञता से इस आजादी को भोगने हर क्षेत्र में लोग आतुर है फिर वह राजनीति, समाज, अर्थ या अन्य कोई क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में मानव अपना अपनी हैसियत अनुसार साम्राज्य स्थापित करना चाहता है फिर उस साम्राज्य के लिए उसे नैतिकता, मानवता, इंसानियत किसी की भी आहुति क्यों ना देना पड़े। हाथरस, निर्भया जैसे अन्य देश भर में घटते घटनाक्रम इस बात के प्रमाण है कि आजादी के बीच सत्ताऐं किस तरह से बेबस और मजबूर हो सकती है दुर्भाग्य की हकीकत के दिग्दिर्शन पश्चात भी लोगों का कलेजा जिस समाज में ना पसीजे और संस्कारों की होली सामाजिक तौर पर साफ दिखाई दे उस पर भी लोगों की चुप्पी यह समझने काफी है कि हमारी आजादी किस स्तर तक जा पहुंची है। बड़े दु:ख और अफसोस की बात उस महान भू-भाग के लिए कही जा सकती है जहां लोगों ने अपने जीवन का मूल्य ना समझ अपने संस्कार,संस्कृति और समाज सहित सर्वकल्याण की खातिर अपने बचपन, जवानी ही नहीं समूचे जीवन की कुर्बानी हंसते-हंसते दी। आज गांधी और शास्त्री जी को याद करने का समय था मगर जिस तरह के घटनाओं का दिग्दिर्शन भारत की महान विरासत के महामानवों ने किया, इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा और विचारणीय विषय भी माना जाएगा कि आखिर हम आज कहां खड़े है।
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