नैतिकता को नेस्तनाबूत करती मौजूदा भगवान
वीरेन्द्र शर्मा
कोरोना काल के कहर के बीच आज जिस तरह से कर्तव्य विमुख कृतज्ञता कोहराम मचाने आतुर है उसके कहर से मानवता की रूह भी आज कांपने बेबस मजबूर है। सेवा के नाम रातों रात लॉज, होटलों से तब्दील हो कोविड सेंटर बने इन सेवाभावी संस्थानों का आलम यह है कि जहां बगैर छुए ही लक्ष्मीजी जमकर कृपा बरसा रही है अगर यों कहें कि दीवाली से पूर्व ही आज के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों के दर पर लक्ष्मीजी की कृपा चौबीसों घंटे बरस रही है तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी। धन लुटाने में मशगूल सत्ताओं का खजाना भले ही खाली होने की ओर अग्रसर हो मगर फुर्सत किसे जो इस महामारी के बीच उन सेवकों से चंद सवाल कर सके कि आखिर यह महामारी उन लाखों-करोड़ों बेबस मजबूर लोगों के हक की बात नहीं है यह तो एकात्म स्वरूप में उस सभ्य समाज के सामने है जो धन को सर्व कल्याण का अस्त्र मान जंग जीतने और साम्राज्य स्थापित करने आतुर है। श्मशान मुक्तिधामों में लगती कोरोना से हार चुके लोगों की भीड़ और बड़े से बड़े अस्पतालों से लेकर छोटे से छोटे क्लीनिकों तक में बढ़ती संक्रमितों की भीड़ इस बात का प्रमाण है कि कहीं तो चूक हुई है मगर जिस नैतिक पतन की पराकाष्ठा आज के भगवान अर्थात चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग कर रहे हैं वह मानवता को ही सिर्फ कलंकित नहीं किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने काफी है। शायद इस साम्राज्यवादी मानसिकता और धन कुबेर बनने की लालसा से निकल इस सच को हम समझ पाऐं क्योंकि कोरोना किसी एक वर्ग या व्यक्ति के हिस्से की बात नहीं है अगर इसने विकराल रूप धारण किया तो मानवता को बचा पाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन होगा।
No comments:
Post a Comment