Responsive Ads Here

Shishukunj

Shishukunj

Monday, October 11, 2021

राजनीति में मूल्यों और सिद्धांतों के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध थीं राजमाता जी : प्रहलाद भारती

 


Prahlad Bharti prahladbhartibjp@gmail.com

Attachments7:56 AM (12 hours ago)
to bcc: me


*वात्सल्यमयी अम्मा महाराज राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की जयन्ती पर स्मृत्यान्जलि -
        राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी का पुण्यस्मरण आते ही ध्यान में आता है कि वात्सल्यमयी अम्मा महाराज राजमाता जी एक ऐसा प्रेरणादायी व्यक्तित्व रही हैं जिन्होनें देश और समाज को आराध्य मानकर अपने जीवन का पल-पल समाज और राष्ट्रसेवा में समिधा बनाकर अर्पित कर दिया। राजमाता जी के जीवन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि जीवन में स्वधर्म पर डटे रहने का साहस और अनेक कष्ट सहन करने की उनकी क्षमता, उनकी शक्ति इस सीमा तक थी कि राजनैतिक क्षेत्र में होने के बाद भी वे धर्मनिष्ठ थीं, अध्यात्म में उनकी अपार श्रृध्द्वा थी। भक्ति की शक्ति ने ही उन्हें ममता की प्रर्तिमूर्ति बनाया। राजमाता से कहीं आगे बढ़कर वे सच्चे अर्थो में लोकमाता थीं। राज-परिवार के सुख-वैभव को तिलांजली देकर अपने आराम और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर वे पूरी निष्ठा के साथ लगातार समाज और राष्ट्र के सेवा कार्यो में मनोयोग से लगी रहती थीं। समाज के वंचित वर्गो, वनवासियों और महिलाओं से जुड़े सेवा कार्यो के सिलसिलें में वे लगातार देशव्यापी प्रवास पर रहती थीं।

            राजमाता जी ने अपने सार्वजनिक राजनैतिक जीवन में कभी भी सत्ता की राजनीति नही की। उन्होनें राजनीति में रहकर हमेशा मूल्यों और सिद्वांतो की राजनीति के संवर्धन का काम किया। उन्होने राजनीति में सिद्वांतों से कभी कोई समझौता नही किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को फैलाने के लिए जो संघर्ष समितियाॅ बनाई गई थीं उसमें राजमाता जी की अग्रणी भूमिका थी, संघर्ष समिति के कार्यो के लिए उन्होनें अपनी ओर से न केवल आर्थिक सहयोग दिया, बल्कि जे.पी. आंदोलन के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए व्यापक दौरे भी उन्होनें किए. राजमाता जी राजनीति में राष्ट्र-सेवा की भावना से प्रेरित होकर सक्रिय रहीं। आपातकाल में उन्होनें तिहाड़ जेल की सीखचों के भीतर अपार कष्ट भोगना स्वीकार किया, लेकिन कभी भी सिद्वांतो के साथ समझौता नही किया। जिन सिद्धांतों के प्रति वे प्रतिबद्व थीं उनके प्रति हमेशा समर्पित रहीं। राजमहल के सुख-वैभव और सारी सुविधाओं को छोड़कर लगातार एक प्रतिबद्व कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय रहना कोई साधारण बात नहीं है।

        राजनीति के क्षेत्र में निरंतर सक्रियता के बीच भी उनकी हिन्दुत्व निष्ठा सदा जागृत और अविचल बनी रही। राष्ट्रीय राजनीति, हिन्दुत्व और सांस्कृतिक मानबिन्दुओं की पुनःस्थापना के अभियान में वे हमेशा आगे बढ़कर भाग लेती थीं। राममंदिर आंदोलन से उनका सक्रिय जुड़ाव रहा। विश्व हिन्दू परिषद के हर कार्यक्रम में वे उपस्थित रहती थीं। मुझे लगता है कि राजनीति में रहकर राजनैतिक दल में ‘‘माँ’’ का स्थान बना पाना यह असंभव काम है लेकिन वात्सल्यमयी अम्मा महाराज राजमाता जी ने इस असंभव को अपनी ममता और अथक परिश्रम से संभव कर दिखाया। हर भाजपा कार्यकर्ता उन्हें अपने बीच पाकर माँ के वात्सल्य का अनुभव करता था।

         राजमाता जी की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि राजनैतिक दल में यदि कभी कोई खेमेबाजी रही भी हो तो उन्होनें खुद को उससेे ऊपर रखा और समाज कार्य में सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया। राजमाता जी की मौलिक निष्ठा हमेशा पार्टी, पार्टी के सिद्धांतों और कार्यक्रमों के प्रति रही. पार्टी के व्यापक हितों को उन्होनें हमेशा सर्वोपरि रखा। पार्टी के अनुशासन की सीमा को उन्होनें कभी नही तोड़ा। राजमाता जी शासन को जनसेवा और विकास का माध्यम बनाने में विश्वास रखती थीं। राजनीति में रहकर एक राजनेता का दायित्व और उसकी भूमिका क्या होनी चाहिए, यह हम राजमाता जी के 

प्रेरणादायी जीवन से सीख सकते हैं। अपने पूरे राजनैतिक जीवन में उन्होनें कभी भी कार्यकर्ताओं को अनदेखा नहीं किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर उनके सुख-दुख को बाॅटने का काम उन्होनें किया और ऐसा करते समय उन्हें हमेशा सुखानुभूति होती थी। कहा जा सकता है कि महलों के बीच रहते हुए गलियों की पीड़ा का अनुभव उन्होंने किया। आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी इन प्रेरणादायी स्मृतियों के साथ मैं उन्हें हृदय से भावाज्जंलि, स्मृत्यांजली अर्पित करता हूँ।

No comments:

Post a Comment