अगर लोकतंत्र में राजा मालिक भगवान तथा व्यवस्था संचालन का आधार जनता जनार्दन है और देश कर्म तथा कृषि प्रधान है। आजादी के 72 वर्ष बाद लगभग 14 करोड़ कुपोषित, 80 करोड़ सस्ते राशन, 50 करोड़ सस्ती स्वास्थ्य सेवा तथा करोड़ों रोजगार श्ुाद्ध पेयजल, दूध, पक्के आवास के मोहताज क्यों है? देश का अन्नदाता सम्माननिधि आम नागरिक सुरक्षा भाव, अनुभूति तो बेसहारा पेंशन के मोहताज है मानो हमारे लोकतंत्र से समृद्ध, खुशहाल, सुरक्षित, स्वस्थ जीवन अब इतिहास बनने आतुर है जबकि आजादी के पूर्व हमारा कर्मगार किसान इतने समृद्ध खुशहाल स्वस्थ थे जो सत्ता, शासन ही नहीं समूचे समाज के लिए दाता हुआ करते थे कारण साफ है स्वार्थवत साम्राज्यवादी मानसिकता ने हमारे सामर्थ को नतमस्तक ही नहीं किया बल्कि हमारे पुरूषार्थ को पंगु बना हमारी संवैधानिक सार्वजनिक संस्थाओं को सिसकने पर बेबस कर दिया, क्योंकि अब हर दल सियासत नेता को अब पांच वर्ष का सेवा कल्याण का संवैधानिक समय स्वयं का सामर्थ पुरूषार्थ सिद्ध करने नाकाफी लगने लगा है इसलिए सतत सत्ता सुख सेवा कल्याण सर्व कल्याण में अहम हो चुका है जो हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा अगर हमें हमारी महान विरासत की सिद्धता और स्वाभिमान की रक्षा करना है तो उप चुनावों में अधिक से अधिक मतदान कर अच्छे सच्चे सेवाभावी लोगों को चुनना पड़ेगा जिससे हमारा लोकतंत्र मजबूत हो हमें हमारी महान पहचान लौटा सके।
जय-स्वराज
No comments:
Post a Comment