वीरेन्द्र शर्मा विलेज टाईम्स समाचार सेवा
जीत हुई तो मैं मुख्यमंत्री रहूंगा, एक सीट चाहिए, मेरा अंतिम चुनाव है, विकास और मप्र के युवाओं के भविष्य का सवाल है, गद्दार-वफादार आदि, आदि मुद्दों के बीच छिड़े सियासी घमासान में लगता है अब अंतिम जीत-हार की आस अब भावुक मुद्दों पर आ टिकी है क्योंकि पूर्व-वर्तमान मुख्यमंत्री के बीच आ रूके इस घमासान में प्रत्याशी भी पीछे नहीं है जो अब इस उप चुनाव को अंतिम चुनाव बताने में जुटे है मगर मतदाता की खामोशी है जो टूटने का नाम ही नहीं ले रही, आखिर पांच वर्ष तक वोट देकर स्वयं को ठगा सा महसूस करने वाली जनता के पास अभी 10 दिन का समय है। जिसमें उसे चुनावी शोर से दूर यह तय करना है कि उसका बचपन, जवान और उत्तराद्र्व किन हालातों में गुजरा है और बच्चों का भविष्य कैसे-कौन समृद्ध, खुशहाल, सुरक्षित बना, शिक्षित, स्वस्थ्य बना सकता है आखिर वोट के लिए मंचों से दुहाई देने वाले भावी सपने दिखाने वाले आम मतदाता के लिए कोई नए चेहरे या दल नहीं, कुछने मत पाकर सत्तता सुख भोगा है तो कुछ का अपना सार्वजनिक जीवन में सेवा-पुरूषार्थ का इतिहास रहा है, काश जाति-झण्ुड, गैंग, गिरोह बंद सियासत से सावधान मतदाता सही विचार कर पाऐं तो निश्चित ही आम मतदाता अच्छे सच्चे सेवक को चुनने में अवश्य कामयाब होगा, क्येांकि लोकतंत्र में सदन के सदस्य से ताकतवर ना तो सरकार होती है और ना ही सत्ताऐं, यह आज के समय में आम मतदाता युवा को समझने वाली बात होना चाहिए।
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