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Tuesday, March 2, 2021

परमात्मा की कृपा से ही जीव को होती सत्संग की प्राप्ति : संत जुगलकिशोर जी महाराज


जलमंदिर मैरिज हाउस प्रांगण में श्रीमदभागवतकथा ज्ञानयज्ञ दिया ज्ञानोपदेश संदेश

शिवपुरी। परमात्मा जीव के ऊपर जब कृपा करते हैं तब सत्संग की प्राप्ति होती है। उन्होंने सत्संग के महत्व को समझाते हुये कहा कि जब जीव के वहुत जन्मों का फल उदित होता है तब सत्संग प्राप्त होता है। साथ ही महाराजश्री ने कहा कि सत्संग में जाने के वाद कोई खाली हाथ नहीं आता, कुछ ना कुछ प्राप्त करके ही आता है। वहीं सत्संग के प्रभाव से मनुष्य के अज्ञान का पर्दा हट जाता है। उक्त आर्शीवचन दिए प्रसिद्ध वृन्दावनधाम से आए संत जुगलकिशोर जी महाराज ने स्थानीय जल मंदिर मैरिज हाउस परिसर में आयोजित संगीतमय श्रीमदभागवत कथा का महत्व समझा रहे थे। इस दौरान महाराजश्री ने कथा के लेखक महर्षि वेदव्यास को 18 पुराण 06 शास्त्र व 04 वेद के वाद रचित 17वें अवतार बताया है। उन्होंने शरीर के अंदर का राजा मन को बताते हुये कहा कि श्रीमदभागवतकथा 18वां पुराण है।

 सत्यम परमध्ीामहि को परिभाषित करते हुये महाराज श्री ने सुखदेव महाराज के परमहंस व्यक्तित्व की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि परमात्मा की कृपा हर जगह बरस रही है बस उसे ग्रहण करने की पात्रता होनी चाहिये। कथा के मध्य सुंदर भजन ::मेरे बांके विहारी संवरिया, तेरा जलवा कहां पर नहीं है:: श्रवण कराते हुये आनंदित किया। सूरदास जी का दृष्टांत सुनाते हुये श्रद्धालुओं को समझाया कि जब सूरदास जी भगवान के मंदिर में दर्शन करने पहुंचे तो दर्शनार्थियों ने उन्हें टोका कि आप यहां किसके दर्शन करने आये हो। तब सूरदास जी ने उत्तर दिया कि मैं भले ही अपने भगवान को नहीं देख सकता लेकिन वो तो मुझे देख सकता है, इसलिये मैं यहां आया हूॅ। इसे सुन दर्शनार्थी स्तब्ध रह गये। 

महाराजश्री ने समझाया कि परमात्मा के यहां भेद नहीं है वो सबको एक दृष्टि से देखते हैं। प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा की निष्काम भक्ति करना चाहिये। क्योंकि निष्काम भक्ति ही परमधर्म कहलाती है। महाराजश्री ने बताया कि यदि आत्मा की प्रशन्नता चाहते हो तो परमात्मा से कभी कुछ मांगना नहीं चाहिये। उन्होंने सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग में भगवान के 24 अवतारों की कथा का प्रशंग सुनाया। साथ ही बताया कि काम क्रोध पर जिसने विजय प्राप्त कर ली है वह भागवत का अधिकारी माना जाता है। 

कुन्ती के चरित्र की कथा श्रवण कराते हुये ब्यासपीठ से संत जुगलकिशोर जी महाराज ने बताया कि कुंती भगवान की एैसी भक्त हुई कि उन्होंने भगवान से दु:ख मांगा क्योंकि दु:ख में भगवान का स्मरण बना रहता है। उन्हेंाने प्रशंग को जीवन से जोडते हुये समझाया कि जिसके ऊपर भगवान की कृपा होती है वह दु:ख में भी हंसता व मुस्कराता रहता है। कथा के अंत में कथा आयोजक भारद्वाज परिवार द्वारा महाआरती व प्रसाद वितरण पश्चात द्वितीय दिवस की कथा को विराम दिया गया। ्र

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