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Tuesday, July 26, 2022

धर्म का नापने का एक ही पैमाना है वह है जीवन में सद्गुणों का विकास : संत कुलदर्शन विजय जी




जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने को लेकर आराधना भवन में मुनिश्री ने दिए आर्शीवचन

शिवपुरी। धर्म को नापने का एक ही पैमाना है- जीवन में सदगुणों का विकास। धार्मिक क्रियाएं निश्चित रूप से धर्म के मार्ग की ओर हमें अग्रसर करती हैं। लेकिन उन्हें तब तक धर्म की संज्ञा नहीं दी जा सकती, जब तक जीवन में सकारात्मक बदलाव नहीं आता। अधिकांश लोग धार्मिक क्रियाओं को ही धर्म समझने लगते हैं। उनकी मानसिकता रहती है कि हमने तप, त्याग, दान, सामायिक, आराधना और भगवान का पूजन कर लिया तो हम धार्मिक बन गए। यह सोच उन्हें अहंकार से ग्रस्त कर देती है। उक्त विचार बाल मुनि के नाम से विख्यात प्रसिद्ध जैन मुनि कुलदर्शन विजय जी ने स्थानीय आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। 

सकारात्मक बदलाव क्या है, इसे भी पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि कषायों, विकारों और दुर्गुणों से मुक्ति तथा जीवन में संवेदनशीलता, विनम्रता, अहिंसा, दया, करूणा, प्रेम और दूसरों की सहायता करने की भावना का विकास होना। धर्म से आपके स्वभाव में भी बदलाव होना चाहिए। धर्मसभा में जैनाचार्य कुलचंद्र सूरि जी महाराज साहब और मुनि श्री कुलरक्षित विजय जी महाराज साहब भी मौजूद थे। अपने उदबोधन में जैन संत कुलदर्शन विजय जी महाराज ने बताया कि हम धार्मिक क्रियाओं में इतने लीन हो जाते हैं कि धर्म के अर्थ को भी भूल जाते हैं। 10-10 सामायिक तो करते हैं लेकिन 10 मिनिट की समता भी हमारे जीवन में नहीं आती है।

भरपूर धर्म-ध्यान करने के बावजूद भी हम संवेदनहीन बने रहते हैं। जबकि धर्म से जीवन में सदगुणों का विकास होना चाहिए। अहिंसा, प्रेम, संवेदनशीलता, और करूणा से जीवन परिपूरित होना चाहिए। धर्म को नापने का जीवन में परिवर्तन हो रहा है या नहीं यहीं एक मात्र पैमाना है। धार्मिक क्रियाओं को धर्म समझने की भूल से जीवन में परिवर्तन तो होता ही नहीं है बल्कि हमारा स्वभाव बिगड़ जाता है और अहंकार हमारे सिर पर जड़ें जमा लेता है। 

महाराज श्री ने कहा कि धन और धर्म दोनों ही जीवन में अहंकार पैदा कर देते हैं। धार्मिक क्रियाओं को ही धर्म समझने के कारण हममें यह भावना बलबती हो जाती है कि हम सर्वोपरि हैं। समाज में भी हमें सम्मान मिले इसकी लालसा रहती है और यदि नहीं मिलता तो अहंकार क्रोध को जन्म दे देता है।

जीवन में विनम्रता की इस तरह दी सीख
जीवन में विनम्रता कैसे आए, अहंकार से कैसे मुक्ति मिले, इसका मार्ग बताते हुए पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि हम किसी के प्रति अनुग्रहित हों तो उनके उपकार के प्रति हमें थैंक्यू शब्द कहने में परहेज नहीं करना चाहिए। यदि आपसे गलती हो गई है, किसी का दिल आपने दुखा दिया है तो इसे महसूस कर सॉरी शब्द बोलना चाहिए। यदि आपको किसी से काम है तो आप प्लीज शब्द का उपयोग करें। इससे निश्चित रूप से आपका स्वभाव सुधरेगा और आप धर्म मार्ग पर सुगमता से अग्रसर हो सकेंगे।

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