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Tuesday, May 23, 2023

वनवासी लीला : भगवान राम स्वयं को नही, दूसरों को बड़ा बनाते है


तात्या टोपे पार्क में दूसरे दिन हुआ निषादराज गुहा संवाद

शिवपुरी-''वनवासी लीला" श्रीरामकथा साहित्य और लोक आस्था के चरितों की लीला दूसरे दिन गत रात्रि मान सिंह विश्वविद्यालय ग्वालियर से आए कलाकारों द्वारा आकर्षक एवं मनमोहक प्रस्तुति दी गई। शहर के तात्या टोपे मैदान मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग का प्रतिष्ठा आयोजन व जिला प्रशासन के सहयोग से चल रहे श्रीराम कथा साहित्य और लोक आस्था के चरित्रों की लीला प्रस्तुति के दूसरे दिन आयोजित भगवान राम निषादराज गुहा संवाद के दौरान प्रस्तुति दी। जिसमें निर्देशक हिमांशु त्रिवेदी, संगीत संयोजन मिलिंद त्रिवेदी व आलेख योगेश त्रिपाठी के है।

कार्यक्रम के दूसरे दिन का शुभारंभ जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी उमराव मरावी, नगरपालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा, डिप्टी कलेक्टर शिवांगी अग्रवाल, विरजेंन्द्र यादव, डूडा अधिकारी सौरभ गौड़, नगरपालिका सीएमओ केशव सगर ने दीप प्रज्वलित कर किया। तत्पश्चात ग्वालियर से कलाकारों ने बजरंगबली की आरती की सुंदर प्रस्तुति दी। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के 33 जिलों में संस्कृति विभाग द्वारा आदिवासी जनजाति क्षेत्रों में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

कार्यक्रम में बताया गया कि भगवान राम व केवट संवाद में जब राम गंगा नदी पार करने की केवट से कही तब भगवान लक्ष्मण ने कहा इतनी देर से श्रीराम खड़े है, तुम खड़ेे नही हो सकते। केवट बोला मैं क्यूं उठु ,उठे वो जो बुलाए। मैं कोई ऋषि मुनि तो नहीं हूं, जो श्रीराम को हमेशा बुलाए। केवट ने बोला मुझे महाराज से डर नही लगता क्योंकि सारे संसार को पार उतारने वाले स्वयं मुझसे पार उतारने की कह रहे है तो डर कैसा। केवट ने कहा आपके चरणों में धूल का एक कण भी नही चाहता यदि आप पार होना चाहते है तो चरण धोने के बाद ही पार कराऊंगा। इस तरह केवट ने भगवान राम के चरण पखारकर नाव में बैठाकर गंगा नदी पार कराई। भगवान राम के चरित्र की यही विलक्षणता है कि वे स्वयं को नही दूसरों को बड़ा बनाते है।

महर्षि बाल्मीकि ने गुरुकुल में शिष्यों को सुनाया प्रसंग
वनवासी लीला कार्यक्रम के दूसरे दिन की प्रस्तुति में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अपने शिष्यों को भगवान राम की कथा का विस्तार सुनाते हुए बताया गया। जिसमें महाराज दशरथ के पास सिंगवेर पुर की धरती पर रहने वाले तपस्वी आए और उन्होंने दुर्जनों द्वारा तपस्या, पूजा व हवन में विघ्न डालने की बात कही। तब दशरथ ने कुलगुरु वशिष्ठ की सलाह पर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने के पश्चात राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न पुत्रो का जन्म। कैकई द्वारा कोप भवन में बैठकर राम को 14 वर्ष वनवास, राम वनगमन, निषादराज द्वारा आखेट में दशरथ के पुत्रों की रक्षा करने पर उन्हें अपना पांचवा पुत्र कहना, केवट संवाद, भरत निषादराज संवाद, राम के वापिस अयोध्या लौटने की प्रस्तुति दी।

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