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Tuesday, November 21, 2023

गुरू के समक्ष अपने पापों की आलोचना कर जीवन सरल बनायें : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी


जैन साध्वी ने बताया कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है मोक्ष के मार्ग

शिवपुरी- भगवान महावीर स्वामी की अंतिम वाणी उत्तराध्यन सूत्र का वाचन करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि अपने जीवन और आत्मा को सरल बनाने के लिए साधक को गुरू के समक्ष अपने पापों की आलोचना करना चाहिए और गुरू द्वारा बताए गए दण्ड को स्वीकार कर प्रायश्चित्त करना चाहिए। उन्होंने बताया कि ज्ञान दर्शन चारित्र और तप मोक्ष के मार्ग है। धर्मसभा को गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज साहब ने भी संबोधित किया। गुरू की महिमा का बखान करते हुए साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदना श्री जी ने सुमधुर स्वर में भजनों का गायन किया।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जो व्यक्ति अपने अपराधों और पापों की आलोचना करता है उसकी आत्मा सरल भाव में चली जाती है और उसे आने वाले भाव में स्त्री तथा नपुंसक भव नहीं मिलता है। ऐसे साधक की आत्मा उन्नति की ओर अग्रसर होती है। उन्होंने बताया कि उत्तराध्यन सूत्र में भगवान महावीर ने अपने शिष्य गौतम के 73 सवालों का जवाब देकर उनकी शंकाओं का समाधान किया है। इनमें गौतम का एक सवाल था कि धर्म के प्रति श्रद्धा रखने से किस फल की प्राप्ति होती है। इस पर भगवान ने बताया कि इससे साता वेदनीय कर्म का बंध होता है और बीमारी से मुक्ति मिलती है। जबकि गुरू और साधर्मी की सेवा करने से दुर्गति के रास्ते बंद हो जाते हैं। सामायिक करने से आत्मा पाप मर्ग से दूर होती है। उन्होंने यह भी बताया कि ज्ञान दर्शन और चारित्र मोक्ष के मार्ग है। इनका सहारा लेकर ही आत्मा मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होती है।

समाज सुधार की पहल समाज का समृद्ध वर्ग करे: साध्वी रमणीक कुंवर जी

धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उदबोधन में कहा कि समाज सुधार के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले हम अपने आपको बदलेेंं। उन्होंने कहा कि समाज सुधार की पहल समाज के संपन्न और समृद्ध वर्ग को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सामूहिक विवाह सम्मेलन को हमें कारगर करना है तो इसके लिए आवश्यक है कि बड़े लोग अपने बेटे और बेटियों का विवाह भी सामूहिक विवाह सम्मेलन में करें। जिससे लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा। अन्यथा समाज का मिडिल और निम्न वर्ग ऐसे आयोजनों से अपने आपको उपेक्षित महसूस करता रहेगा। उन्होंने कहा कि शादी समारोह दिन में आयोजित होने चाहिए तथा शादी में यह भी निश्चित होना चाहिए कि हम 11 या 21 वस्तुओं से अधिक नहीं बनायेंगे। इससे शादी समारोह में फिजूल खर्ची रूकेगी।

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