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Thursday, September 26, 2019

आर्य समाज मंदिर में बताया पांच प्रकार की ध्यान विधियों को और कहा जब भी हो ध्यान करें परमात्मा का आत्मज्ञान

स्थिर मन से ही होता है वास्तवित ध्यान : स्वामी शांतानन्दशिवपुरी-यदि वास्तविकता में मनुष्य को ध्यान करना है तो इसके लिए एकाग्रचित होना आवश्यक है क्योंकि स्थितर मन ही ध्यान करने में सहायक है यदि मन विचलित हुआ तो उसे नियंत्रण में रखें जिसमें आपके शरीर की इन्द्रियां आपके हाथों में होती है लेकिन यदि ध्यान करना है तो फिर ध्यान से ही आपकी इन्द्रियां भी नियंत्रण में रहेगी और बस ध्यान की विधियों को जानकर ऐसा मन बनाऐं कि आप जहां भी, जो भी हो रहा है, देख रहे, सुन रहे हो, बात कर रहे हो अथवा व्यापार कर हो उन सब भी परमात्मका का आत्मज्ञान ही आपका सही अर्थों में आध्यात्मिक ध्यान है यदि ऐसा हो गया तो समझिए आपको ध्यान करना आ गया और आप ध्यानी हो गए। ध्यान को इस तरह एकाग्रचित करने का अनुकरणीय मार्ग दिखाया प्रसिद्ध ध्यान योग कराने वाले आर्य समाज से जुड़े स्वामी शांतानन्द जी ने जो स्थानीय आर्य समाज मंदिर में आयोजित पांच दिवसीय प्रारंभिक ध्यान प्रशिक्षण शिविर के द्वितीय दिवस पर योग दर्शन विषय को लेकर अपना धर्मोपदेश एवं ध्यान की क्रियाओं को बता रहे थे। इस अवसर पर मौजूद आर्यजनों समीर गांधी, हनी हरियाणी, साकेत गुप्ता, सचिन, नमन विरमानी, विशाल भसीन सहित अन्य माताओ-बहिनों ने भी ध्यान को लेकर अपनी शंकाओं के बारे में जो जिज्ञासा थी वह प्राप्त की और उसका उचित समाधान भी ध्यान प्रक्रियाओं को अपनाया। ध्यान शिविर के पूर्व सर्वप्रथम  आयर्य समाज मंदिर में हवन-यज्ञ किया गया तत्पश्चात योग, ध्यान के बारे में स्वामी शांतानन्द जी ने बताया। आमजन से भी अपील की गई है कि वह पांच दिवसीय ध्यान-कब, क्यों और कैसे का मार्ग प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन प्रात: 8:00 बजे से 10 बजे तक एवं रात्रि 8:30 बजे से 10 बजे तक आर्य समाज मंदिर पहुंचकर ध्यान की प्रक्रियाओं को जाने-पहचानें एवं उसं अंगीकार करते हुए जीवनोपयोगी बनाऐं।
इन पांच विधियों का करें ध्यान
ध्यान को लेकर सरल शब्दों में बताते हुए स्वामी शातांनन्द जी ने बताया कि ध्यान लगाना कोई सरल कार्य नहीं है यह मन पर नियंत्रण करने का कार्य है और इसे हर कोई मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए यदि ध्यान लगाना है और कब, क्यों व कैसे लगाना है तो पांच प्रकार की ध्यान विधियों को अपने जीवन में उतारें। सर्वप्रथम ध्यान यानि अपने द्वारा उच्चारण किए जाने वाला मंत्रा भले ही ओम, गायत्री मंत्र या जो भी ध्यानकर्ता का हो उसका उच्चारण करें, दूसरा अर्थ मंत्र यानि जो ध्यान आप कर रहे है उसका अर्थ जरूर होना चाहिए अर्थात् उसका चिंतन करें, तृतीय ईश्वर संबोधन करना अर्थात् जो ध्यान आप कर रहे हैं उसमें ईश्वर का बोध है उन्हें संबोधन के साथ स्मरण किया जा रहा हो, चतुर्थ समर्पण ध्यान अर्थात जिस प्रकार से आप किसी पुलिस वाले द्वारा पकड़े जाने पर हाथ खड़े कर समर्पण कर देते है ठीक उसी प्रकार से यदि आपको ईश्वर का ध्यान करना है तो परमात्मा के लिए समर्पण जरूर करें और समर्पण ध्यान सीधे परमात्मा से साक्षात्मकार कराता है अंत में ईश्वर प्रार्थना यानि जब कभी किसी ध्यान में मन ना लगे तब ईश्वर प्रार्थना करें और परमात्मा से कहे हे प्रभु मैं आपके आसक्त होना चाहता हूूॅ और मुझे ध्यान दीजिए, मेरा मन आप में लगे। इस तरह आप पांच प्रकार की ध्यान विधियों से भी परमात्मका से सीधे साक्षात्मकार कर सकते हो।

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