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Monday, September 21, 2020

न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर का समय रहते उपचार संभव :डॉ जफर


दिव्यांग बालकों को मनमाकिफ़ स्कूल में प्रवेश की संवैधानिक सुविधा है:मारू

चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 12 वी ई संगोष्ठी में बोले विशेषज्ञ 

शिवपुरी। एक बच्चे के लिए मोबाइल पर चालीस मिनिट से अधिक समय बिताना उसके मानसिक विकास को अवरुद्ध करता है लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चा रुचिकर पारस्परिक संवाद  में चालीस मिनिट से अधिक समय स्क्रीन पर बिताता है या केवल अपनी काल्पनिक दुनिया मे एकपक्षीय आंनद लेता है।क्वालिटी स्क्रीन टाइम 40 मिनिट से अधिक नुकसानदेह नही है बशर्ते सीखने और रुचिकर संवाद की स्थिति है। कोरोना काल मे बच्चों के ऑनलाइन क्लासेस से निर्मित सामयिक परिस्थितियों पर आज चाइल्डकंजर्वेशन फाउंडेशन की 12 वी ई संगोष्ठी को संबोधित  करते हुए ख्यातनाम बाल विज्ञान विशेषज्ञ डॉ जफर मिनाई (यूके) ने यह बात कही।संगोष्ठी को सामाजिक न्याय विभाग के सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड के मेम्बर प्रकाश मारू ने भी संबोधित किया।

डॉ जफर मिनाई ने बताया कि बच्चों का मानसिक विकास अवरुद्ध होना एक सामान्य प्रक्रिया है और इसे हम तत्काल पहचान कर उचित उपचार के माध्यम से परिमार्जित कर सकते है।बालकों का मानसिक विकास न होना एक सामाजिक त्रासदी भी है क्योंकि ऐसे बालक अन्ततः समाज मे अपना समुचित योगदान देने से वंचित हो जाते है।उन्होंने बताया कि बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप विकसित होने जा रहा  है या नही इसकी पहचान परिवारीजन घर में ही सामान्य बाल सुलभ लक्षणों से कर सकते है।मसलन दो माह में अगर बच्चा मुस्कराता है,चार माह में गर्दन संभालने लगता है ,आठ माह में सीधी पीठ से बैठता है और एक साल में पैर के बल खड़ा होने लगता है तो उसके स्वाभाविक विकास में कोई खास अवरोधक नही आते है।अगर ऐसा नही है तो हमें तत्काल न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर की संभावनाओ पर ध्यान देकर उपचार सुनिश्चित करना चाहिये। 

डॉ मिनाई ने बताया कि भारत मे कुछ लोग इन संकेतों की यह कहकर अवहेलना करते है कि हमारे परिवारों में बच्चे देर से बोलना या खड़े होना शुरू करते है।यह स्थिति अक्सर बहुविकलांगता को जन्म देती है।उन्होने बताया कि अगर जन्म के समय बच्चे का वजन दो किलो से कम है या वह प्रसव उपरांत रोता नही है अथवा उसके पीलिया के लक्षण निरन्तर है तब हमें उच्च प्राथमिकता पर ऐसे बच्चों को हाईरिस्क कैटेगरी में रखना चाहिये।डॉ मिनानी ने ब्रेन टॉनिक को एक छलावा बताते हुए ऐसे उत्पादों से दूर रहने की सलाह दी।

सामाजिक न्याय विभाग के केंद्रीय सलाहकार मंडल के सदस्य पंकज मारू ने विभागीय योजनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि मप्र में हर्ष फाउंडेशन के सहयोग से निरामय योजना के तहत 88 हजार जरूरतमंद औऱ सरंक्षण श्रेणी के बच्चों को स्वास्थ्य बीमा कवर उपलब्ध कराया गया है।नवीन दिव्यांगता कानून में सरकार ने 21 तरह की दिव्यांगता को कवर किया है।इस कानून की खासियत यह भी है कि दिव्यांग बच्चों को उनके मनमाकिफ़ स्कूल में प्रवेश की गारंटी दी गई जबकि शिक्षा अधिकार कानून केवल समीपवर्ती स्कूल में प्रवेश की पात्रता देता है।साथ ही अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में भी यह कानून लागू है जिसके चलते दिव्यांग बालक इनमें प्रवेश ले सकते है।श्री मारू ने बताया कि दिव्यांग बालकों के लिए संचालित राज्य एवं केंद्र सरकार के सयुंक्त सरकारी स्कूलों को अब शत प्रतिशत केंद्रीय सहायता से चलाने पर भी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय सहमत है। 

हर जिला मुख्यालय पर डीडीआरसी के माध्यम से दिव्यांग बालकों के पुनर्वास एवं अन्य सहायता की व्यवस्था की गईं है।मौजूदा सरकार ने क्षेत्रीय पुनर्वास केंद्रों की संख्या 8से बढाकर 20 कर दी है।इसके अलावा नेशनल फंड स्कीम के जरिये प्रतिभाशाली दिव्यांग बालकों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।विदेश पढ़ने के लिए ऐसे बालकों को 20 लाख तक की सीधी सुविधा की पात्रता है।गंभीर बीमार बच्चों को एक लाख की मदद भी उपलब्ध है।श्री मारू ने बताया कि पर्सन,फेमिली,प्रोफेशन,और पॉलिसी के स्तर पर दिव्यांगता को समेकित करके ही इस जंग को जीता जा सकता है।नए दिव्यांग कानून में इसी समेकन का प्रयास किया गया है।

इस सेमिनार में मप्र के अलावा बिहार,ओडीसा,बंगाल,दिल्ली,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,झारखण्ड,आसाम,उत्तराखंड,चंडीगढ़,यूपी,कर्नाटक,राजस्थान,पंजाब के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि सभ्य समाज मे दिव्यांगता से पीड़ित बालकों औऱ उनके परिजनों के प्रति हमें सहानुभूति प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है।उन्होंने दोनों अतिथि वक्ताओं का भी आभार व्यक्त किया।सेमिनार का संयोजन करते हुए  फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने बताया कि सीसीएफ बाल सरंक्षण औऱ विकास के क्षेत्र में एक बहुउपयोगी केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को आकार देने के लिए प्रयासरत है।इसके तहत अखिल भारतीय स्तर पर विशेषज्ञों का स्वतंत्र पूल बनाया जा रहा है।
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