वीरेन्द्र शर्मा विलेज टाईम्स समाचार सेवा
जिस तरह की भाषाशैली का उपयोग हार-जीत के दांव को लेकर ग्वालियर चंबल सहित समूचे मप्र में चल रहा है उसे किसी भी सभ्य समाज में सराहनीय तो नहीं कहा जा सकता मगर सियासत है जिसके लिए अब इस तरह की शब्दावली जीत के लिए किसी अलाउद्दीन के चिराग से कम नहीं जान पड़ता। जिसके चलते हर दल और प्रत्याशी अपनी-अपनी ढपली और अपने-अपने राग की तरह वोट कबाडऩे की जुगत में लग चुका है। देखना होगा कि जनता इस ऊहा-पोह भरे माहौल में किस तरह से अच्छे और सच्चे ईमानदार प्रत्याशियों को स्वयं के सेवा कल्याण के लिए चुन पाती है।
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