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Monday, May 6, 2024

धोखाधड़ी एवं न्यासभंग के मामले में मशीन व्यापारी को न्यायलय ने किया बरी


मामला सिविल प्रकृति की श्रेणी का दर्शित होने से दांडिक मामला पोषणीय नही

शिवपुरी- शहर के दंत रोग चिकित्सक डॉ.नीतेश शर्मा की ओर से बिजनेश शुरू करने को लेकर फर्म चावला एक्सपोर्ट अमृतसर(पंजाब) से संपर्क किया और मशीन के लिए कंपनी से कोटेशन मांगा जिसके बाद परिवादी नितेश शर्मा ने बताया की उसको अभियुक्त फर्म ने मशीन सप्लाई नही की गई।संबंधित चिकित्सक ने इस मामले में पुलिस थाना कोतवाली में अपने साथ हुई धोखाधड़ी को लेकर शिकायत की जिसके बाद परिवादी ने प्राइवेट परिवाद धारा 420,406 के तहत माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया।

प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी डॉ. नितेश शर्मा की ओर से प्रस्तुत परिवाद अंतर्गत धारा 420, 406 में बताया की उसने अपने छोटे भाई के लिये बिजनेस शुरू करने के लिये एक पेपर बेग निर्माण करने वाली मशीन की आवश्यकता थी जिसके बाद उसने इण्डिया मार्ट बेबसाईट के माध्यम से आरोपी फर्म चावला एक्सपोर्ट अम्रतसर (पंजाब) से संपर्क किया जिसपर परिवादी ने मशीन के लिये कंपनी से कोटेशन मांगा परिवादी ने बताया कि दिनांक 20.05.2017 को कोटेशन प्राप्त हुआ जो कि 4 लाख 60 हजार रूप्ये का विथ रॉ मटेरियल एवं 60 हजार रूप्ये की अग्रिम राशि कंपनी ने दर्शित की। परिवादी अनुसार कोटेशन प्राप्त होने के बाद उसने बजाज फाइनेंस से लोन लेकर दिनांक 29.05. 2017 को 2 लाख 50 हजार रूप्ये पुन: अपने बैंक खाते से कंपनी के बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिये जिसके बाद कंपनी ने उसका फोन उठाया बंद कर दिया, उसके बाद इण्डिया मार्ट बेवसाईट पर कम्पलेंट की जिससे कोई समाधान नहीं निकला और इसके बाद डॉ.नीतेश शर्मा ने कोतवाली शिवपुरी में लिखित शिकायत दर्ज कराई फिर न्यायालय के समक्ष कंपनी के विरूद्ध धोखाधडी व न्यायभंग किये जाने का परिवाद प्रस्तुत किया।

 न्यायालय के समक्ष आई संपूर्ण लेखीय एवं मौखिक साक्ष्य एवं अभियुक्त के अधिवक्ता द्वारा किये गये प्रतिपरीक्षण एवं तर्क कि परिवादी द्वारा जिस कोटेशन के माध्यम से अभियुक्त फर्म से मशीन क्रय किये जाने का संव्यवहार होना बताया है वह मूल कोटेशन ही परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई है और इस तर्क का प्रश्न है कि परिवादी द्वारा अभियुक्त फर्म को जानबूझकर शेष राशि का भुगतान नहीं किया गया है और मशीन के संव्यवहार के पालन हेतु कोई सूचन सूचना पत्र भी परिवादी द्वारा अभियुक्त फर्म को नहीं दिया गया है तथा बचाब में यह सिद्ध किया कि परिवादी द्वारा मशीन डिलेवर होने की तय समयावधि को अनुबंधित समयसीमा से कम बताया है एव ना ही परिवादी द्वारा अभियुक्त फर्म को संपूर्ण राशि का भुगतान किया गया है। 

विचारण के दौरान न्यायालय द्वारा पाया कि परिवादी कथानक एवं परिवादी द्वारा दी गई साक्ष्य से यह स्पष्टता दर्शित नहीं होता है कि अभियुक्त का आशय प्रारंभ से ही कपटपूर्ण या बेईमानीपूर्ण था। मात्र संविदा भंग का मामला बनना प्रतीत होता है इस प्रकार पक्षकारों के बीच का विवाद सिविल प्रकृति का है और दाण्डिक मामला पोषणीय नहीं हैं इस प्रकार परिवादी की ओर से साक्ष्य की विवेचना उपरांत परिवादी अभियुक्त के विरूद्ध धारा 420, 406 के अपराध का आरोप संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है परिणामस्परूप अभियुक्त को उक्त धाराओं से माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथमश्रेणी (अमित प्रताप सिंह) के न्यायालय से बरी किया गया। उक्त मामले में आरोपी पक्ष की ओर से पैरवी अंकित वर्मा अधिवक्ता द्वारा की गई।

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