शिवपुरी-सन् 1857 के प्रथम राष्ट्रीय स्वाधीनता महासमर के कीर्तिस्तंभ अमर शहीद क्रांतिवीर तात्या टोपे की जयंती के उपलक्ष्य में शहर के प्रबुद्ध नागरिकों ने दीपयज्ञ कार्यक्रम आयोजित कर अमर हुतात्मा तात्या टोपे को श्रद्धांजलि अर्पित की। तात्याटोपे स्मारक स्थल पर दीपयज्ञ कार्यक्रम का आयोजन पूर्व विधायक प्रहलाद भारती, डॉक्टर पी.के. खरे एवं गायत्री परिवार के विद्वत आचार्यों के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। पूर्व विधायक प्रहलाद भारती ने दीपयज्ञ कार्यक्रम में शुभेच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि देश की युवा पीढ़ी के मन में तात्या-टोपे के अदभुत बलिदान से प्रेरणा लेने का भाव मन में जगे, और इस देश की मिट्टी से हम सभी का गहरा लगाव और अनुराग बने, यही तात्या टोपे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दीपयज्ञ के उपरांत विचार प्रबोधन प्रस्तुत करते हुए प्रोफेसर दिग्विजय सिंह सिकरवार ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वाधीनता महासमर में महारानी लक्ष्मीबाई के प्राणोत्सर्ग के बाद जब सभी क्रांतिकारी नेता हताश हो गए थे, क्रान्ति के सफल होने की रही-सही आशा भी समाप्त हो गयी थी, जब चारों तरफ केवल और केवल निराशा और सर्वनाश छाया हुआ था, पराजय जब सामने स्पष्ट दिखायी दे रही थी, ऐसे कठिन समय में भी तात्या टोपे ने हार नहीं मानी और स्वाधीनता समर को अपनी पूरी ताकत, पूरी सामर्थ्य के साथ जारी रखा। अपने गुरिल्ला वारफेयर की सामर्थ्य से उन्होंने ब्रिटिश फौजों को सैंकड़ों मीलों तक दौड़ाए रखा।
महारानी लक्ष्मीबाई के प्राणोत्सर्ग के करीब 01 वर्ष बाद तक क्रांति की ज्योत को उन्होंने जलाए रखा, युद्ध जारी रखने के लिए तात्या टोपे के पास धन और युद्ध-संसाधन नहीं थे। तमाम अवरोधों और विरोधियों के होते हुए भी ब्रिटिश हुकूमत की साधन-संपन्न और संगठित सेना से अपनी जिन्दगी की अंतिम साँसों तक उन्होंने संघर्ष किया। दीपयज्ञ कार्यक्रम में मुख्य रूप से गायत्री परिवार के जिला समन्वयक पी.के. खरे, मुख्य प्रबन्ध ट्रस्टी अनिल रावत, एन.आर. महते, चंदर मेहता, हरिराम साहू, कन्हैया झा, रामलखन धाकड़, स्कूल संचालक अमित सोनी, मोहर सिंह धाकड़, विपिन धाकड़ इत्यादि उपस्थित रहे।
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