बंदियों ने सुना श्रीमद् भगवद्गीता का प्रेरक व्याख्यानशिवपुरी-जेल शिवपुरी में प्रदेशभर में आयोजित हो रहे गीता महोत्सव के अवसर पर सोमवार को श्रीमद् भगवद्गीता विषयक एक विशेष ज्ञान–व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में जेल अधीक्षक रमेश चंद्र आर्य, जेलर श्री पांडे, समस्त जेल स्टाफ तथा बड़ी संख्या में बंदियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम कल शुभारंभ जेल अधीक्षक श्री आर्य ने दीपक प्रज्वलित कर किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पंडित दिनेश शर्मा ने गीता के प्रमुख अध्यायों पर सरल भाषा में सारगर्भित व्याख्यान दिया। उन्होंने विशेष रूप से कर्मयोग, स्थितप्रज्ञता, आत्मबल, और जीवन-संघर्ष में संतुलन जैसे गीता के मूल संदेशों को बंदियों के समक्ष रखा। उन्होंने कहा मनुष्य का भविष्य उसके कर्मों से निर्धारित होता है। गीता सिखाती है कि परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, यदि मन दृढ़ रहे और कर्म निष्काम हो तो परिवर्तन अवश्य संभव है। गीता–मर्मज्ञ श्री जोशी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गीता जीवन–पुनर्निर्माण का अद्भुत मार्ग है। उन्होंने कहा कि अर्जुन की तरह जीवन में कई बार भ्रम उत्पन्न होते हैं, किंतु ज्ञान और सही दृष्टि प्राप्त होने पर असंभव भी संभव बन जाता है। बंदियों में आत्मसुधार की यह यात्रा गीता के संदेश से और सशक्त होगी। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बंदियों ने भाग लिया और गीता के श्लोक, आध्यात्मिक संदेश तथा प्रेरक कथा–व्याख्यान को ध्यानपूर्वक सुना। कई बंदियों ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन उन्हें नई सोच और जीवन में बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं।
गायत्री शक्तिपीठ के विद्वानों का आध्यात्मिक संदेश
शिवपुरी गायत्री शक्तिपीठ के विद्वानजनों आरबी खरे, आरके जोशी शम्भूदयाल ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया और साधना, आत्मजागरण, और संस्कार परिवर्तन की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मन की शुद्धि ही व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है। गायत्री मंत्र और गीता के उपदेश व्यक्ति को भीतर से प्रकाशवान बनाते हैं। जेल अधीक्षक रमेश चंद्र आर्य ने बताया कि ऐसे कार्यक्रमों का उद्देश्य बंदियों में मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मसुधार की भावना विकसित करना है।उन्होंने कहा कि प्रशासन आगे भी ऐसे धार्मिक–सांस्कृतिक एवं व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा।



No comments:
Post a Comment