खूंटी पर मानव धर्म, सत्ता के आगे दम तोड़ता सामथ्र्य सेवा कल्याण
व्ही.एस.भुल्ले
अगर लोकतंत्र की प्रमाणिकता इतनी अकल्पनीय बेबस मजबूर होती है तो निश्चित ही कोई भी विदित मानव धर्म, कर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति परिवार,समाज,राज्य, राष्ट्र इसे कदाचित स्वीकार नहीं करता, अगर अपुष्ट कहावत किवंदति महान शहीद सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह जिनका मानना था कि आजादी के तत्काल बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था हमारे रास्ते हित में नहीं वहीं गांधीजी का वह ग्राम स्वराज जिसकी कल्पना उन्होंने उच्चतम नैतिक मूल्यों के आधार पर की, वह प्राकण्ड्य विद्वान जिन्होंने राज्य संचालन में लोकतांत्रिक जीवन मूल्य कर्तव्य आधारित रचना की मगर दुर्भाग्य आजादी के पश्चात जो पहला कार्य नैसर्गित विद्या अनुरूप या प्राकृतिक सिद्धांत अनुरूप होना था मौजूद शिक्षा पद्वति विषय वस्तु पर ग्राम और शिक्षा की जगह नई विद्यानीति का निमा्रण जो नहीं हो सका, कहते हैं अगर किसी जीव जन-जाति मानव में जब अपने नैसर्गिक स्वभाव अनुरूप सही विद्या नीति का अभाव हो व वह मूल संस्कारों से दूर हो तो ऐसा समाज ना तो सुसंस्कृत बन पाता है ना ही अपने जीवन मूल्यों की रक्षा कर पाता है।
वह अपने नैसर्गिक पुरूषार्थ सामथ्र्य की सार्थकता जीवन में सिद्ध करने में अयोग्य हो जाता है जिसका सीधा प्रभाव व्यक्ति परिवार समाज ही नहीं उस राष्ट्र के आचरण को भी प्रभावित करता है जिससे मानव ही नहीं समूचे जीव-जगत को सेवा कल्याण का भाव अपेक्षित होता है। आज एक वैभवपूर्ण दिव्य भव्य विरासत जिस तरह से बेलगाम आजादी का शिकार हो अपने गौरव वैभव को खोने पर बेबस मजबूर है वह मूल विद्या से विदित किसी भी मानव धर्म में आस्था रखने वाले से छिपा नहीं, लगभग 150 वर्ष की स्वार्थपूर्ण स्थापित शिक्षा के सांचे से निकली नव संस्कृति संस्कार सामथ्र्य पुरूषार्थ का कोहराम ऐसा कि सिर्फ सत्ता धन विलासिता अहंकारी जीवन अब मानव का अंतिम लक्ष्य बन चुका है
जबकि लोकतंत्र अधिकार, सेवा कल्याण, विधा विद्वानों की टोलियां सर्व कल्याण को स्वयं स्वार्थ में खोजने लगी है और गिरोह बंद सियासत संस्कृति सफलता का मूलमंत्र ऐसे में कलफते जीवन मूल्य अपने अस्तित्व की तलाश में अनाथ हो विचरण करने पर बेबस मजबूर है। अब ऐसे में विश्वास के अभाव में पुरूषार्थ दम तोड़े या फिर सत्ता के लिए सामथ्र्य सेवा कल्याण शैया पर बड़ा मानव धर्म और सर्व कल्याण आज एक अबूझ पहेली बन चुका है इस सत्य से ना तो सत्ता, सियासत, समाज, संस्कार, संस्थाऐं अनभिज्ञ है और ना ही गैंग बंद सियासत विधा विद्वान कहते है सृष्टि में विश्वास ही वह धागा है जो जीवन को जीवन से जोड़ उसे समृद्ध खुशहाल जीवन की सुन्दर माला बना उसे दिव्यता भव्यता प्रदान कर जीवन को सार्थक सफल सिद्ध करती है। विधा ज्ञान ही वह जीवन का ब्राह्मत्र है जिसकी गोद में विकास और विनाश दोनों खिलते है तय आज के मानव को करना है।
जय-स्वराज
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