नैसर्गिक अधिकार से बेदखल बेजुबानों की बदहाली मानव सभ्यता पर कलंक
श्राप के रहते सर्व कल्याण असंभव
वीरेन्द्र शर्मा
जल, जंगल, जमीन से बेदखल बेजुबान उस पशुधन का श्राप ही कहा जाएगा जो सर्व कल्याण में आज सबसे बड़ी बाधा है। यह अलग बात है कि सत्ता की खातिर सर्व कल्याण में आस्था रखने वालों के समृद्ध खुशहाल जीवन और आत्मनिर्भर भारत वर्ष निर्माण के सूत्र अलग हो सकते है मगर आत्मा की आवाज के अभाव में यह कार्य लगभग असंभव सा जान पड़ता है फिर हम कितने ही अर्थ, शक्तिशाली क्यों ना बन जाए मगर समृद्धि खुशहाली और सामर्थ पूर्ण प्रचार असंभव ही है। अगर मानव वाक्य में ही स्वयं और सर्व कल्याण में आस्था रखता है तो उसे उन बेजुबानों के नैसर्गिक अधिकार जल, जंगल, जमीन को लौटा उन्हें अतिक्रमण मुक्त करना ही होगा। तभी आत्म निर्भर भारत और सर्व कल्याण सुनिश्चित है।
जय स्वराज
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