दलों की दरियादिली मगर जीवन हुआ बेहाल
वीरेन्द्र शर्मा विलेज टाईम्स समाचार सेवा
व्यवस्था जो भी हो मगर जब संरक्षण सुरक्षा का भाव मानव के जीवन से दूर हो जाता है तो निश्चित ही उसका जीवन समृद्ध होने के बाबजूद भी अभाव ग्रस्त हो जाता है। ऐसे में लोकतांत्रिक व्यवस्था में दलों की दरियादिली के चलते जीवन का बेहाल होना अपने आप में एक यक्ष सवाल यह सर्वथा सत्य है कि किसी भी जीवन के लिए सामर्थ के संरक्षण के साथ सुरक्षा की आवश्यकता होती है जिससे जीवन स्वच्छंद विचरण कर सके। चूंकि बिहार में चुनाव और मप्र में उप चुनाव आजादी के 72 वर्ष बाद कई मर्तबा चुनाव हुए, अलग-अलग दलों की सरकारें बनी मगर आज जिस तरह से आम मानव के जीवन में शारीरिक सुरक्षा जीवन निर्वहन की सुरक्षा और स्वच्छंद विकास की सुरक्षा का अभाव घर करता जा रहा है वह दलों की निष्ठा पर सवाल खड़े करने काफी है। देखा जाए तो जिस असुरक्षा का भाव आम नागरिक में खाद्यान्न से लेकर फिजीकली और रोजगार को लेकर घर कर चुका है उसका निदान ना होना और ना ही पारदर्शी ऐसी कोई अधोसंरचना का लोगों के सामने होना निश्चित ही उन्हें निराश करता है। बहरहाल लोकतांत्रिक व्यवस्था के सत्य से अनभिज्ञ लोगों की आस्था भले ही आज भी दलों में हो और दलों के अंदर दरियादिली मगर इससे लोकतांत्रिक स्वच्छंदता का भाव अनुभूति से दूर ही रहता है। चूंकि चुनाव है इसलिए मतदान हर नागरिक को अवश्य करना चाहिए और अपने भूत और वर्तमान का संज्ञान ले भविष्य के लिए मतदान करते वक्त अवश्य सोचना चाहिए, क्योंकि जो वोट मांगते है वह भी उन्हीं के बीच के होते है और उनके आधुनिक जीवन सामर्थ पुरूषार्थ से भी परिचित होते है। आज के समय हर मतदाता को अवश्य इन बातों पर विचार करना चाहिए।
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