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Shishukunj

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Friday, October 23, 2020

अनुभूति के अभाव में बेभाव बिखरती आशा-आकांक्षा

सत्ता श्राप साबित होती बेकाबू जन आकांक्षा

वीरेन्द्र शर्मा विलेज टाईम्स समाचार सेवा

कहते हैं सेवा कल्याण के भाव में नि:स्वार्थ सर्व कल्याण का भाव हो तो वह जीवंत समाज, जीवन, सृजन में संजीवनी बन जाता है मगर उसमें जब स्वार्थवश सामर्थ पुरूषार्थ का प्रदर्शन हो तो वह जीवन समाज समृद्ध खुशहाल होने से वंचित हो विनाश का कारण बन जाता है। इस तरह से आज मानव सत्ता की खातिर स्वार्थवश कृतज्ञता के साथ स्वयं को सेवा कल्याण में कृतज्ञ महसूस कर रहा है यह उसी कृतज्ञता का परिणाम है कि जनकांक्षाऐं कर्तव्यों को भूल अधिकारों के प्रति अधिक कृतज्ञ नजर आती है जिसका बेकाबू स्वरूप अब सत्ता ही नहीं संगठन संस्थाओं पर भी भारी पड़ रहा है कारण साफ है जब उत्तरदायित्व विहीन पुरूषार्थ क्षणिक सेवा कल्याण का अचूक अस्त्र मान स्वार्थवश उसका इस्तेमाल करता है तो ऐसे में पुरूषार्थ के परिणाम भयावह होना स्वाभाविक है फिर वह व्यक्ति, समाज, संस्था, संगठन, सत्ता ही क्यों ना हो, ऐसी स्थिति में सेवा कल्याण की स्थिति उस पशुवत लाड़-दुलार की भांति हो जाती है जो अंजाने में ही सही  खुद के जन्मे बच्चे को चाट-चाटकर लहूलुहान कर देता है जो ना तो उसके नवजात शिशु के हक में होता और ना ही सृजन के, आज के समय में यह बात हर उस मानव को समझने वाली बात ना चाहिए जो स्वयं के जीवन के साथ अन्य जीवों के जीवन की कल्याण का भाव रखता है। 

 

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