श्रीचिंतामणि पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर में उत्साह से मनाया गुरूपूर्णिमा महोत्सवशिवपुरी- जिसके जीवन में गुरू नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं, जीवन में गुरू का होना आवश्यक है क्योंकि मनुष्य को सुख और दु:ख में भले ही भगवान का स्मरण करना पड़ता हो लेकिन इस सांसारिक जीवन में उसे इस सुख-दु:ख से भाव कराने का परमार्थ गुरू पर ही होता है, इसलिए प्रतिवर्ष गुरूपूर्णिमा के अवसर पर गुरूओं का सम्मान और उनके प्रति आदरभाव रखना हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है, बिना गुरू के जीवन व्यर्थ है इसलिए जब भी किसी को गुरू मानें तो उसका सम्मान हमेशा करें, निश्चित ही गुरूरूपी कृपा से मनुष्य का जीवन सफल हो जाएगा। गुरू की इस महिमा पर आर्शीवचन दिए प.पू. अमीपूर्णा श्री.जी.म.सा. ने जो स्थानीय श्रीचिंतामणि पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर मंदिर में आयोजित गुरूपूर्णिमा महोत्सव पर अपना व्याख्यान प्रदान कर रही थी। इस अवसर पर समस्त जैन समाज की ओर से गुरू के रूप में प.पू.अमीपूर्णा श्री.जी. म.सा. की अनुमोदन की गई और उत्साह के साथ गुरूपूर्णिमा महोत्सव मनाया गया।
प.पू.अमीपूर्णा श्री.जी.म.सा. ने अपने आर्शीवचनों में गुरूपूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा कि अगर जीवन में गुरू ना हो तो हमें धर्म से कौन जोड़ेगा? देव, गुरू और धर्म यह तीन तत्व है, अगर गुरू है तो ही हम देव और धर्म तत्व से जुड़ सकते है, देव तो कुछ बोलते नहीं है, भी करें स्वीकार है पर गुरू हैं, तो प्यार से हमें समाझाऐंगें, माता-पिता ने हमें जन्म दिया, पर सही मार्ग बताने का कार्य तो गुरू ही करते है, गुरू हमारा आत्म विकास करते है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते है, दुर्गति से सद्गति की ओर प्रयाण कराते है, हमारा परिवार, वकील, डॉक्टर, शिक्षक है पर अगर गुरू नहीं है तो हमारी उलझन को कौन सुलझाएगा।
उन्होंने बताया कि एक बार इन्द्रभूति गौतम सोमिल ब्राह्मण के यहां यज्ञ करा रहे थे, सुना कोई सर्वज्ञ आया, मेरे होते हुए सर्वज्ञ दूसरा कौन? समवसरण में पधारे प्रभु ने नाम लेके पुकारा अह का विसर्जन हुआ, अहं का सर्जन हुआ, गुरू के समागम से क्रोध क्षमा में, ज्ञान सरलता, माया निष्कपटता, लोभ संतोष में परिवर्तित होता है।
परमात्मा का शासन मोक्ष का हाईवे है, परमात्मा वीर को गौतम और गौशाला दोनों मिले, गौतम को अगर अपन ने पकड़ा है तो अपने में क्षमा, विनय, विवेक, सरलता है, अहं है और गौशाला को पकड़ा है तो निकसमि गुफा समान है, अहं का साम्राज्य व्याप्त है। गौशाला एक बार परमात्मा के ऊपर के मुंंह में प्रवेश कर गई। 12 दिन तक असहाय पीड़ा से पीडि़त हुए, नरक के 12वें देवलोक में गए। जाते-जाते अपने अनुयायियों को बताया मैं गलत हूॅ, वीर परमात्मा सच है, देवलोक में से हर योनि में दो-दो बार जन्म पाकर अंत में तीर्थंकर बनेंगें। तीर्थंकर बनके प्राथम देशना में कोई भी गुरू द्रोह मत करो, गुरू की महिमा को बताऐंगें। गुरू हमारे जीवन रूपी गाड़ी के वाईपर है, वाईपर अगर अच्छा है तो ही गाड़ी अच्छे से पहुंच पाती है। जीव में गुरू है तो ही संसार का असली स्वरूप, दु:खरूप, दु:ख का फल देने वाला, दु:ख का बंध कराने वाला है यह सीख हमें मिलती है। अनुक्रम से देव और धर्मत्व को पाकर मोक्षनगरी की ओर अग्रसर बढ़ें यह आर्शीवाद दिए।
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