डबिया से बलारी माता दरबार तक हजारों श्रद्धालुओं का प्रवाह, रास्ते भर गूँजते रहे जयकारे, आस्था और एकता का अद्भुत संगमशिवपुरी। सहरिया समाज में धर्म चेतना का प्रवाह लगातार प्रबल होता दिखाई दे रहा है। सनातन परंपराओं, देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा और अपने मूल सांस्कृतिक स्वरूप की ओर लौटने की यह लहर अब जनांदोलन का रूप ले चुकी है। इसी कड़ी में सहरिया क्रांति परिवार द्वारा अब तक की सबसे विशाल चुनरी यात्रा का आयोजन किया गया, जो सुबह 9 बजे ग्राम डबिया से प्रारंभ होकर 30 किलोमीटर दूर स्थित माँ बलारी के पावन धाम तक पहुँची। इस यात्रा में बिना चप्पल-जूते के नंगे पैर चलकर श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था और भक्ति की शक्ति का दर्शन कराया।
यात्रा की शुरुआत में ही वातावरण में गूँजते जय माता दी, माता रानी की जय, सहरिया क्रांति जिंदाबाद के नारों ने गाँव-गाँव की धरती को भक्ति की तरंगों से भर दिया। हजारों की संख्या में बच्चे, बुजुर्ग, युवा, माताएँ और बहनें भक्ति-भाव से धर्मध्वजाएँ थामे, सामूहिक स्वर में माता के भजनों का गायन करते हुए कदम-दर-कदम आगे बढ़ते रहे। रास्ते में जो भी गाँव और बस्तियाँ पड़ीं, वहाँ के आदिवासी परिवार श्रद्धा से नंगे पाँव यात्रा में शामिल होते चले गए। देखते ही देखते यात्रा लगभग 5 किलोमीटर लंबी विशाल आस्था की धारा में परिवर्तित हो गई। रास्तेभर भरकुली, सुरवाया, भदाबावड़ी, करई और आसपास के ग्रामीणों ने माता के भक्तों के स्वागत हेतु पंडाल लगाकर फल, प्रसाद, और जलपान की व्यवस्था की थी। गाँव की स्त्रियाँ थालियों में अक्षत, दीप, रोली और नारियल लेकर द्वार-द्वार से भक्तों का अभिनंदन करती नजर आईं।
यह दृश्य बताता है कि आस्था जब जन-जन में समाहित हो जाती है, तो वह केवल धार्मिक कार्यक्रम नहीं रह जाती, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का उत्सव बन जाती है। इस विशाल आयोजन में सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन, विजय भाई आदिवासी, औतार आदिवासी, अनिल आदिवासी, मक्खन आदिवासी, कल्याण आदिवासी, अजय आदिवासी, भदौरिया आदिवासी, राजकुमार आदिवासी, प्रदीप आदिवासी, सावदेश आदिवासी, केशव आदिवासी, राज आदिवासी, हजरत आदिवासी सहित सैकड़ों जिम्मेदार साथियों ने व्यवस्था को निरंतर सुचारू ढंग से संभाला।

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