शिवपुरी। हिन्दी साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद विषय पर केन्द्रित एक विशेष वार्ता का प्रसारण 27 अक्टूबर, सोमवार को आकाशवाणी शिवपुरी से होगा। सुबह सात बजकर बीस मिनट पर प्रसारित होने वाली इस वार्ता को जाने- माने लेखक ज़ाहिद ख़ान प्रस्तुत करेंगे। गौरतलब है कि हिन्दी—उर्दू के कई बड़े रचनाकारों मसलन प्रेमचंद, वृंदावनलाल वर्मा, विष्णु प्रभाकर, शानी, मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ वगैरह और विशेष दिवस विश्व हिन्दी दिवस, तात्या टोपे बलिदान दिवस, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला लाजपत राय आदि पर ज़ाहिद ख़ान की अनेक वार्ताएं आकाशवाणी शिवपुरी से इससे पहले भी प्रसारित हो चुकी हैं। जिन्हें श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसंद किया गया है। वर्ष 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के गठन के बाद भारतीय साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद का प्रचलन बढ़ा। हिन्दी साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा। साहित्यकार प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, रांगेय राघव, हरिशंकर परसाई और फणीश्वरनाथ रेणु के अधिकांश साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद का चित्रण दिखाई देता है।
शिवपुरी। हिन्दी साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद विषय पर केन्द्रित एक विशेष वार्ता का प्रसारण 27 अक्टूबर, सोमवार को आकाशवाणी शिवपुरी से होगा। सुबह सात बजकर बीस मिनट पर प्रसारित होने वाली इस वार्ता को जाने- माने लेखक ज़ाहिद ख़ान प्रस्तुत करेंगे। गौरतलब है कि हिन्दी—उर्दू के कई बड़े रचनाकारों मसलन प्रेमचंद, वृंदावनलाल वर्मा, विष्णु प्रभाकर, शानी, मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ वगैरह और विशेष दिवस विश्व हिन्दी दिवस, तात्या टोपे बलिदान दिवस, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला लाजपत राय आदि पर ज़ाहिद ख़ान की अनेक वार्ताएं आकाशवाणी शिवपुरी से इससे पहले भी प्रसारित हो चुकी हैं। जिन्हें श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसंद किया गया है। वर्ष 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के गठन के बाद भारतीय साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद का प्रचलन बढ़ा। हिन्दी साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा। साहित्यकार प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, रांगेय राघव, हरिशंकर परसाई और फणीश्वरनाथ रेणु के अधिकांश साहित्य में सामाजिक यथार्थवाद का चित्रण दिखाई देता है।

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