शिवपुरी | आजाद भारत के 78 वर्षों बाद भी क्या इंसान को गुलाम बनाकर रखा जा सकता है? क्या आज भी आदिवासियों को जानवरों की तरह हांका जा सकता है । शिवपुरी के पुलिस अधीक्षक (SP) कार्यालय में आज जब सेंवड़ा गाँव के बिलखते आदिवासियों ने अपनी व्यथा सुनाई, तो मानवता शर्मसार हो गई। यह सिर्फ एक शिकायत नहीं, बल्कि उस व्यवस्था के मुँह पर तमाचा है जो विकास के बड़े-बड़े दावे करता है, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि सहरिया आदिवासी आज भी 'बंधुआ मज़दूरी' के नरक में धकेले जा रहे हैं।
मामला सुभाषपुरा थाने के ग्राम सेंवड़ा का है। भुखमरी और बेरोज़गारी की मार झेल रहे 16 सहरिया आदिवासियों को ऊँची मज़दूरी का झाँसा देकर महाराष्ट्र ले जाया गया। ग्रामीणों का आरोप है कि गाँव के ही नीतेश आदिवासी के माध्यम से महाराष्ट्र के बिचौलियों ने इन मासूमों को जाल में फँसाया। उन्हें क्या पता था कि जिस काम को वे अपनी गरीबी मिटाने का ज़रिया समझ रहे हैं, वही उनकी ज़िंदगी का सबसे काला अध्याय बन जाएगा। आज वे 16 ज़िंदगियाँ, जिनमें दुधमुँहे बच्चे और किशोरियाँ भी शामिल हैं, महाराष्ट्र की किसी अज्ञात जगह पर बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं।
एसपी को सौंपे गए शिकायती पत्र में जो आपबीती बताई गई है, वह रूह कँपा देने वाली है। बंधक बनाए गए सोबरन, सोमवती, संतोष, काजल और अन्य आदिवासियों से रोज़ाना 19-19 घंटे काम कराया जा रहा है। सुबह 3 बजे जब दुनिया सो रही होती है, तब इन पर कोड़े बरसाकर इन्हें काम पर झोंक दिया जाता है और रात 10 बजे तक इनका शोषण जारी रहता है। न भरपेट खाना, न पीने का साफ पानी—सिर्फ मार-पीट और गालियाँ ही उनकी नियति बन चुकी हैं। यह सीधे तौर पर 'बंधुआ श्रम पद्धति अधिनियम' और 'एससी-एसटी एक्ट' की धज्जियाँ उड़ाना है।
इस पूरे मामले में 'सहरिया क्रांति' सामाजिक आंदोलन के संयोजक संजय बेचैन , औतार भाई सहरिया , मोहरसिंह आदिवासी , भडोरिया आदिवासी , आशाराम आदिवासी ने ने हुंकार भरी है। आंदोलन के कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि प्रशासन की सुस्ती ही इन मानव तस्करों के हौसले बुलंद करती है। गाँव में जो बच्चे पीछे छूट गए हैं, वे अपने माता-पिता के लिए बिलख रहे हैं। पड़ोसी उनका पेट पाल रहे हैं, लेकिन प्रशासन अब तक सोया हुआ है। सहरिया क्रांति ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल महाराष्ट्र पुलिस से संपर्क कर इन बंधकों को मुक्त नहीं कराया गया और दोषी बिचौलियों (मोबाइल नंबर: 92096 30219) को सलाखों के पीछे नहीं भेजा गया, तो यह आक्रोश सड़कों पर उतरेगा।
प्रशासन को अल्टीमेटम: हमें कार्रवाई चाहिए, कोरा आश्वासन नहीं!
पीड़ित परिवारों ने रुँधे हुए गले से एसपी महोदय से गुहार लगाई है कि उनके अपनों को मौत के मुँह से बाहर निकाला जाए। सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक शिवपुरी का सहरिया आदिवासी पलायन और शोषण की बलि चढ़ता रहेगा। क्या प्रशासन की 'विशेष टीम' महाराष्ट्र जाकर इन आदिवासियों को सुरक्षित वापस लाएगी या फिर यह फाइल भी अन्य फाइलों की तरह धूल फाँकेगी।
मुख्य मांगें:
• महाराष्ट्र पुलिस के समन्वय से तत्काल रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जाए।
• दोषी नियोक्ता और बिचौलियों पर मानव तस्करी की धाराओं में FIR दर्ज हो।
• पीड़ितों का बकाया वेतन दिलाया जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था हो।






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